विदुर स्वर
by प्रवीण पाण्डेय
महाभारत का एक दृश्य जो कभी पीछा नहीं छोड़ता है, एक दृश्य जिस पर किसी भी विवेकपूर्ण व्यक्ति को क्रोध आना स्वाभाविक है, एक दृश्य जिसने घटनाचक्र को घनीभूत कर दिया विनाशान्त की दिशा में, एक दृश्य जिसका स्पष्टीकरण सामाजिक अटपटेपन की पराकाष्ठा है, कितना कुछ सोचने को विवश कर देता है वह दृश्य।
राजदरबार जहाँ निर्णय लिये जाते थे गम्भीर विषयों पर, बुद्धि, अनुभव, ज्ञान और शास्त्रों के आधार पर, एक परम-भाग्यवादी खेल चौपड़ के लिये एकत्र किया गया था। विशुद्ध मनोरंजन ही था वह प्रदर्शन जिसमें किसी सांस्कृतिक योग्यता की आवश्यकता न थी, भाग लेने वालों के लिये। आमने सामने बैठे थे भाई, राज परिवार से, जिन्हें समझ न थी कि वह किसके भविष्य का दाँव खेल रहे हैं क्योंकि योग्यता तो जीत का मानक थी ही नहीं। जिस गम्भीरता और तन्मयता से वह खेल खेला गया, राजदरबारों की आत्मा रोती होगी अपने अस्तित्व पर।
जीत-हार के उबड़खाबड़ रास्तों से चलकर बढ़ता घटनाक्रम जहाँ एक ओर प्रतिभागियों का भविष्य-निष्कर्ष गढ़ता गया, वहीं दूसरी ओर दुर्भाग्य की आशंका से उपस्थित वयोवृद्धों दर्शकों का हृदय-संचार अव्यवस्थित करता गया। सहसा विवेकहीनता का चरम आता है, अप्रत्याशित, द्रौपदी को युधिष्ठिर द्वारा हार जाना और दुर्योधन का द्रौपदी को राजदरबार लाये जाने का आदेश।
मौन-व्याप्त वातावरण, मानसिक स्तब्धता, एक मदत्त को छोड़ सब किंकर्तव्यविमूढ़, पाण्डवों के अपमान की पराकाष्ठा, भीम का उबलता रक्त, न जाने क्या होगा अब? सर पर हाथ धर बैठे राजदरबार के सब पुरोधा। सिंहासन पर बैठा नेतृत्व अपनी अंधविवशता को सार्थक करता हुआ।
विदुर |
एक स्वर उठता है, विदुर का, दासी-पुत्र विदुर का, पराक्रमियों के सुप्त और मर्यादित रक्त से विलग। यदि यह स्वर न उठता उस समय, महाभारत का यह अध्याय अपना मान न रख पाता, इतिहास के आधारों में, निर्भीकता को भी आनुवांशिक आधार मिल जाता। सत्यमेव जयते से सम्बन्धित पृष्ठों को शास्त्रों से हटा दिया जाता दुर्योधन-वंशजों के द्वारा। ऐसे स्वर जब भी उठते हैं, निष्कर्ष भले ही न निकलें पर आस अवश्य बँध जाती है कोटि कोटि सद्हृदयों की। सबको यही लगता है कि भगवान करे, सबके सद्भावों की सम्मिलित शक्ति मिल जाये उस स्वर को।
विदुर का क्या अपनी मर्यादा ज्ञात नहीं थी? क्या विदुर को भान नहीं था कि दुर्योधन उनका अहित कर सकता है? क्या विदुर को यह ज्ञान नहीं था कि उनका क्रम राजदरबार में कई अग्रजों के पश्चात आता है? जहाँ सब के सब, राजनिष्ठा की स्वरलहरी में स्वयं को खो देने के उपक्रम में व्यस्त दिख रहे थे, यदि विदुर कुछ भी न कहते तब भी इतिहास उनसे कभी कोई प्रश्न न पूछता, उनके मौन के बारे में। इतिहास के अध्याय, शीर्षस्थ को दोषी घोषित कर अगली घटना की विवेचना में व्यस्त हो जाते।
ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं।
महाभारत के इस दृश्य का महत-दुख, विदुर के स्पष्ट स्वर से कम हो जाता है। हर समय बस यही लगता है कि हाथ से नियन्त्रण खोती परिस्थितियों को कोई विदुर-स्वर मिल जाये। यह स्वर समाज के सब वर्गों का संबल हो और सभी इस हेतु सबल हों।
इतिहास आज आस छोड़ चुका है, अपने अस्तित्व पर अश्रु बहाने का मन बना चुका है। अब तक तो भीष्म ही निर्णय लेने से कतरा रहे थे, सुना है, विदुर भी अब रिटायर हो चुके हैं।
हर समय बस यही लगता है कि हाथ से नियन्त्रण खोती परिस्थितियों को कोई विदुर-स्वर मिल जाये। यह स्वर समाज के सब वर्गों का संबल हो और सभी इस हेतु सबल हों-सत्य वचन…काश!! कोई विदुर स्वर उठे.
आशा रखिए!किसी न किसी को तो विदुर की भूमिका का निर्वहन करना ही पड़ेगा!
विदुर को महात्मा यूं ही तो नहीं कहते.आज भी रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड्स पर विदुर नीति, भर्तृहरी शतक, और चाणक्य नीति की पुस्तकें बैस्ट सैलर हैं. अपने-अपने स्तर पर ये एक-दुसरे से भिन्न भी हैं और एक-दूसरी की पूरक भी.
इस आलेख में समकालीन मनुष्य के संकटों को पहचानने तथा संवेदना की बची हुई धरती को तलाशने का उद्देश्य स्पष्ट है।
ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं।बिल्कुल सही बात …. आज के हालातों में विदुर के चेतना स्वर की सच में समाज को आवश्यकता है…..
आपका लिखा अब दीवाने आम हो चला है -इसलिए विदुर ने क्या कहा था इसका उल्लेख भी पोस्ट में अवश्य होना चाहिए था -वैसे हम भी यह जोड़ कर अपने टिप्पणी कर्म की इतिश्री तो कर ही सकते थे(विदुर उवाच ) -हाँ सही कहते हैं इस समय विदुर नहीं दादुर स्वर गुंजायमान हैं! द्यूत क्रिया की भर्त्सना पर ऋग्वेद में एक पूरा मंडल ही है 🙂
सिहासन अंधों के हवाले हो, विदेश के शकुनि(मामा या मम्मा)हित संरक्षण हेतु शिरोधार्य हों ,नीति जब केवल सिद्धातों में रह जाय -दिखाने भर को , तो बेचारे विदुर की हैसियत ही क्या ? फिर तो एक महाभारत की ही संभावना रह जाती है.
विदुर, नीति के तो नारद, तथ्यों के सवाल उठाने के लिए गढ़े ऐसे पात्र हैं, जो खुद तो विसंगत लगते हैं लेकिन शास्त्रों की विसंगति के बावजूद, इन्हीं पात्रों के माध्यम से लाई गई बातों के कारण शास्त्रों के प्रति आस्था बनी रह जाती है.
आज व्यक्ति अपने सुखों में इतना लिप्त है कि उसे विरोध के स्वरों में अपना सुख छिनता दिखायी देता है इसलिए वह मौन है। सच है अब विदुर भी रिटायर्ड हो चले हैं।
ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं।महाभारत के इस दृश्य का महत-दुख, विदुर के स्पष्ट स्वर से कम हो जाता है। हर समय बस यही लगता है कि हाथ से नियन्त्रण खोती परिस्थिति…..बहुत सही लिखा है आपने -मैं पूर्णतया सहमत हूँ -अगर इस्तेमाल न की जा सके तो विद्वत्ता का कोई मतलाब नहीं है
इतिहास के अध्याय, शीर्षस्थ को दोषी घोषित कर अगली घटना की विवेचना में व्यस्त हो जाते।आज तक तो यही होता आया है ..पर यह भी सच है की यह इतिहास को बनाने में भी भूमिका अदा करते हैं …..जहाँ तक आज की पोस्ट पर विचार करें आपने इतिहास का सन्दर्भ लेते हुए समकालीन परिस्थितिओं को अच्छी तरह से विश्लेशत किया है ….आपका शुक्रिया
"ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं "वाकई अगर साहस, विवेक का साथ छोड़ दे तो कुछ नहीं बचता शायद उस घर में भी सन्नाटा छ जाता है ! और आज के समय में जब दुर्जनों ने बाज़ार लगाई हो तब नैराश्य माहौल तो लगता ही है !
ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं।…sach kaha
विदुर नीति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है .बस विदुर जैसोँ को विदुर जैसा बनने का इन्तजार है. हर रात के बाद सुबह तो होती ही है ….सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत सही लिखा है आपने –
ाभी तक कहीं दूर दूर तक किसी विदुर के आने की आहट नही है। काश कि ऐसा हो जाये। विचारनीय पोस्ट के लिये बधाई।
और व्याख्या होती तो और अच्छा होती चर्चा….वैसे भी अपने आप में बात पूरी है….विदुर वैसे ही हैं जैसे की नीति की बातें…बस कहने सुनने के लिए….लेकिन बात उठती रहनी चाहिए…..नहीं तो सब समाप्त हो जाएगा….
"ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं "बहुत सच …
जब विदुर ने तब मौन तोडा था तो उसका कोई असर नहीं हुआ हुआ वही जो बड़े पदासीन लोगों की मर्जी थी अब विदुर समझदार है जानता है की यहाँ भी उसकी नीची आवाज कोई नहीं सुनेगा इसलिए आज की महाभारत में वो मौन ही रहना ठीक समझता है क्योकि उसका बोलना और मौन रहना एक सामना है |
बिल्कुल सही कहा है आपने इस आलेख में ..बेहतरीन प्रस्तुति ।
भीष्म का सिंहासन के प्रति प्रतिबद्धता अगर अनुकरणीय थी तो विदुर वचन का महत्व भी . जिस को आपने आज के इस परिप्रेक्ष्य में सटीक व्याख्या की है .
कुब्यवस्था के खिलाफ विदुर की आवाज हर युग में गूंजती रहेगी
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी हैकल (3/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकरअवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।http://charchamanch.uchcharan.com
उम्मीद पर दुनिया कायम है ..विदुर स्वर जरुर उठेगा.
मन जब हताश होता है तो यही भाव इसे घेर लेते हैं,पर बादल जब कुछ छंटते हैं तो लगता है ..नहीं ऐसा ही नहीं रहेगा सब समय…नहीं भूलना चाहिए कि राजदरबार की उस घटना के बाद महाभारत का वह युद्ध भी तो हुआ था,जिसके द्वारा अधर्म का समूल नाश हुआ था…एक भरे दरबार में सबसे सशक्त राजवंश की कुल वधू ,अजेय पांच पांडवों की पत्नी को नग्न करने का प्रयास किया जाता है…संभवतः हमारा आज अधर्म और निर्लज्जता के उस शिखर तक नहीं पहुंचा है,इसलिए क्रांति नहीं हो रही…लेकिन अच्छा ही है..यह घड़ा जितनी जल्दी भर जाए,उतना ही अच्छा है….नवनिर्माण बिना पुराने को समूल मिटाए न हो पायेगा…
आपका लेख अच्छा लगा, लेकिन मुझे ऐसा लगता है के विदुर स्वर तो अब भी उठते ही रहते है, विदुर रिटायर नहीं हो रहे | बाकी एक बात कहने का मन हो रहा है के, हर कोई यही कह रहा है के काश कोई विदुर बन जाये या कहीं से कोई विदुर आ जाये आदि, पर ये कोई नहीं कह रहा के हम विदुर बनते है | मुझे लगता है दूसरों से ये उम्मीद करना के वो कोई परिवर्तन लाये, इससे अच्छा है के वो परिवर्तन हम खुद ही बनने का प्रयास करे | विदुर शायद इस लिए ही दूसरों के विरोध में खड़े होने की आस छोड़ कर खुद ही खड़े हो गए थे | महात्मा गाँधी के कहे कुछ शब्दों को याद दिलाना चाहूंगी , " In order for things to change, YOU have to change. We can't change others; we can only change ourselves. However, when WE change, it changes everything. And in doing so, we truly can be the change we want to see in the world."इतने लम्बे कमेन्ट का सार यही है ये विदुर की प्रतीक्षा करेंगे तो विदुर नहीं दिखने वाले, खुद आगे आयेंगे तो विदुर खुद में ही पा लेंगे |…शिल्पा
"ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं "क्या बात है. बढ़िया.
vidur ka hona achchi sthiti hoti hai. ab to ye bhi nahi milte
aapke iss post ne bachpan ke yaad dila di, jab mahabharat ke aane ka intezaar rehta tha tv pe.aaj ke iss zamane main toh sahi mainek vidhur ke zarurat hai
bina vidur ke sahi arthon ka raj-samaj kahan ? yatharth lekhan …bahut achchha
dubate ko tinake ka sahara.bidur ek andhere ke light the.jo itihas ko kuchh kah gaye. ..sir..aaj ke paripreksh me …aap ka sanshay wajib hai..
विदुर नीति का सुन्दर अवलोकन |जिस तरह सबमे कृष्ण बसते है उसी तरह विदुर जैसी निर्भीकता भी बसती है जरुरत है उसे बाहर लाने की और अवश्य वो वो साहस आयेगा हम सभी में इन आलेखों के माध्यम से और ऐसे ही प्रयासों से |
आपकी बात से असहमत होने का सवाल ही नहीं है, बाकि थोड़ा खुलासा और होता तो शायद हम जैसे भी समझ पाते।
आपने विदुर नीति की बहुत ही विवेचनात्मक प्रस्तुति दी है. काश आज का समाज उनकी इस नीतियों को भलीभांति समझ पाने में सक्षम हो पाता!!
सुना है, विदुर भी अब रिटायर हो चुके हैं। पूरी तरह नहीं समझ पाया ! तो क्या अभी तक वे इस महाभारत का नेतृत्व कर रहे थे ?
विदुर जी के माध्यम से वर्तमान समाज को जगाने की सार्थक कोशिश |
जब किसी अन्याय के प्रति अग्रज मौन रहते हैं तो अनुजों को मुंह खोलना ही पड़ता है॥
Shilpaji ke comments bahut saarthak lage.Vidur niti, aur Krishna niti me jahan Vidur niti aadarsh per aadaharit haiKrishna niti yatharth ko dhyan me rakh flexible hai.Vidur ji ne jahansabhi ko chetane ki koshish ki,Krishnji ne to sabhi ko chetaya hi nahi varan sahama aur dehala bhi diya.Yu to krisnji bhi jab dootban kar gaye,tab bhi mahabharat ke yudh ko taal na sake.Krishna ji is yudh me sammilit hue saarthi ban kar parantu Vidurji ne yudh se door rakha apne ko.Sahi samey per sahi koshish karna kartavya hai.'Karmanaye-ava-adhikaraste maaphelesu kadachina'.Is blog ke liye dher si badhai.
विचारणीय!! समसामयिक!!
विदुर जैसे लोग विरले ही होते हैं। फिर भी विदुर स्वर तो मिल जायेंगे आज भी , लेकिन अफ़सोस , उन्हें सुनने वाले कान नहीं हैं….
"ऐसे स्वर जब भी उठते हैं, निष्कर्ष भले ही न निकलें पर आस अवश्य बँध जाती है".एकदम सटीक.
bidur to aaj bhi hai per unki awaj na pehle suni gayi na aaj
हौसला कायम रखिये,विदुर जैसे लोगों की संख्या लगातार कम हो रही है,पर वे विलुप्त हो जायेंगे ,ऐसा भी नहीं है !आज के जैसे माहौल में ही जो ऐसा बन सके वह अतुलनीय है और उसकी महत्ता बढ़ जाती है !
अंशुमालाजी से सहमत.
आज के विदुर भी घाटोले वाजो के संग मिल गये हे, देखे आने वाले समय मे कोई इन से अलग मिले…
अब विदुर जैसे लोग बचे ही कहां…
"ज्ञान यदि साहसविहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं "क्या बात है| बहुत बढ़िया|
महाभारत से प्रसंग लेते हुए अच्छा विषय उठाया है वैसे भी दूसरों से अपेक्षा रखने से द्रौपदी के निवस्त्र होने की ही आशंका अधिक है
किताबी ज्ञान और विदुर ज्ञान ! वाह.
विदुर तो आज भी हैं और बोल भी रहे हैं। किन्तु न तब उनकी सुनी जाती थी, न आज सुनी जा रही है। न तब लोग उनके साथ खडे होते थे, न आज खडे हो रहे हैं। किन्तु निराशा से जीवन नहीं जीया जा सकता। उम्मीद करें कि विदुर का अकेलापन कभी न कभी तो समाप्त होगा और विदुर-स्वर 'समवेत' होगा।
भाई जी,नमस्ते!मुझ जैसे देसी जुगाड़ के लिए थोड़ी 'आऊट ऑफ़ कवरेज एरिया' थी.दरअसल गंभीर चिंतन वाला डी एन ए है ही नहीं… आशीष
कोई एक सिरफिरा आता है, समाज की बातों को छोड़, सही कार्य में जुट जाता है कुछ न कुछ तो बदल देता है। आज भी हैं – अपने आस पास देखिये। वह दूसरे से अलग दिखायी पड़ेगा।
बात पूरी हो जाती है। आप क्या कहना चाहते हैं स्पष्ट हो जाता है मगर न जाने क्यों ऐसा लगता है कि पोस्ट अधूरी है। लगा जैसे भूमिका बांधी और अंत सुना दिया। या यह भी हो सकता है कि अच्छा-अच्छा पढ़ते हुए और और की इच्छा हो रही हो।
aaj ke vidur awaj uthane se purv apna ahit/hit soch lete hain aur shant ho jaate hai.
@ हर समय बस यही लगता है कि हाथ से नियन्त्रण खोती परिस्थितियों को कोई विदुर.स्वर मिल जाये। यह स्वर समाज के सब वर्गों का संबल हो और सभी इस हेतु सबल हों।इतिहास के मौन पृष्ठों को आपने झकझोर कर जगा दिया है और उससे स्वर लेकर वर्तमान को मुखरित होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यह आस फलीभूत हो।
bahut hi samsamayik soch par, lihi gayi aapki ye mahabhart se prerit, aalekh,sadhubaad
बहुत सुन्दर आलेख..आज आवश्यकता है फिर उसी विदुर की जो अपना स्वर उठा सके..क्या विदुर आयेंगे आज कल के हालात में अपना स्वर उठाने ?
@ Udan Tashtariन जाने कितने जन किसी विदुर स्वर की प्रतीक्षा में राह तक रहे हैं।@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"आशा है कि कभी न कभी विदुर की वाणी राज दरबारों में प्रभावी होगी।@ hindizen.comविदुर नीति का पूरा अध्ययन तो नहीं किया है पर उनका यह साहस ही पर्याप्त कारण है प्रभावित होने के लिये।@ मनोज कुमारकभी कभी घटनाओं में बहुत समानता पाता हूँ, तब की और अब की।@ डॉ॰ मोनिका शर्मासही बात को कहना ही होगा, सही समय पर। मर्यादा को इतिहास कभी समझ नहीं पाता है।
@ Arvind Mishraविदुर ने इतना अधिक लिखा है कि उसे एक पोस्ट में समेट पाना कठिन है। आवश्यकता उस साहस की है जिससे सही स्थान पर, सही समय पर, सही बात कही जा सके। विदुर नीति पर निश्चय ही चर्चा होगी।@ प्रतिभा सक्सेनाविदुर की नहीं सुनी गयी, तो महाभारत हो गया। आज भी विश्व में मचे ताण्डव का कारण विदुरों की उपेक्षा है।@ Rahul Singhइन पात्रों ने सही समय पर सही बात उठा कर शास्तओं के संदर्भों को भलीभाँति प्रस्तुत किया है।@ ajit guptaविरोध के स्वर दोनों पक्षों को विचलित कर देते हैं। इसके लिये बहुत लोग तैयार नहीं कर पाते हैं स्वयं को।@ anupama's sukrity !विदुर ने हर समय सत्य का ही साथ दिया है, उस समय भी राजदरबारों ने सत्य की उपेक्षा की थी।
@ : केवल राम :उत्तरदायित्व तो शीर्षस्थ का ही रहता है, इतिहास में उन्ही का नाम आगे आता है।@ सतीश सक्सेना घर का सन्नाटा विद्रोह में बदल रहा है आजकल इजिप्ट में।@ रश्मि प्रभा…बहुत धन्यवाद आपका।@ उपेन्द्र ' उपेन 'उसी सुबह की प्रतीक्षा में हम सब हैं।@ शिवकुमार ( शिवा) बहुत धन्यवाद आपका।
@ निर्मला कपिलाआहट तब होगी जब सत्य कहने का साहस आयेगा लोगों में, हर स्तर पर।@ Rajesh Kumar 'Nachiketa'निश्चय ही विदुर नीति पर और चर्चा की आवश्यकता है पर विदुर का साहस अपने आप में एक विशिष्ट स्थान रखता है।@ वाणी गीतबहुत धन्यवाद आपका।@ anshumalaआज सब मौन हैं, पर इतिहास इस मौन को मौन भाव से स्वीकार नहीं करता है, उस पर हाहाकार मचा देता है।@ sadaबहुत धन्यवाद आपका।
@ ashish भीष्म का मौन चिन्तनीय था, विदुर का बोलना उस मौन की व्यग्रता थी।@ गिरधारी खंकरियालइसी आवाज को जन जन की शुभेच्छाओं का स्वर मिल जाये काश।@ वन्दना बहुत धन्यवाद आपका इस सम्मान के लिये।@ shikha varshneyउसी प्रवर्तन की प्रतीक्षा है हम सबको।@ रंजना लेकिन अच्छा ही है..यह घड़ा जितनी जल्दी भर जाए,उतना ही अच्छा है….नवनिर्माण बिना पुराने को समूल मिटाए न हो पायेगा…आपकी इस वाणी में न जाने कितने भारतीय के स्वर मिल रहे हैं।
@ Shilpaअच्छे व्यक्ति स्वयं को बदलने के प्रयास में लगे हैं और निर्लज्ज नित द्रौपदियों का चीरहरण कर रहे हैं। व्यवस्था का दण्ड निर्लज्जों का नाश क्यों नहीं करता है? @ santosh pandeyबहुत धन्यवाद आपका।@ musaffirयही तो दुखद दिशा है देश की।@ SEPOमहाभारत की कहानियों में बहुत शिक्षा और बहुत रोचकता है।@ सुरेन्द्र सिंह " झंझट "हर निरंकुशता को विदुर चाहिये। गुलाब और काँटे का संग।
@ G.N.SHAWविदुर का स्वर भले ही राजदरबार में दबा दिया हो पर इतिहास में वह अभी भी महत्व रखता है।@ शोभना चौरेविदुर की निर्भीकता उनकी निष्ठा से आयी थी, राज्य के प्रति और धर्म के प्रति।@ संजय @ मो सम कौन ?अगली पोस्टों में विदुर नीति को स्वर देने का प्रयास करूँगा।@ कविता रावतविदुर को समझ कर ही शालीन विरोध की विधि समझी जा सकती है।@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"अभी तक अन्याय और निर्लज्जता को स्वर मिल रहे थे, अब वह भी लुप्त हो रहे हैं।
@ नरेश सिह राठौड़बहुत धन्यवाद आपका।@ cmpershadअब हम समझ नहीं पा रहे हैं कि हम अग्रज हैं या अनुज।@ rakesh kumarकृष्ण आदर्श पर टिके रहते तो इतिहास कुछ और गाथा गा रहा होता। विदुर ने पर अन्याय को कुरेदा था।@ सम्वेदना के स्वरबहुत धन्यवाद आपका।@ ZEALराजदरबारों का स्वरूप विदुरों के लिये उपयुक्त नहीं रह गया अब।
महाभारत का प्रत्येक पात्र हमारे भीतर ही था, है और रहेगा. विदुर नीति उस समय भी मृदु और कोमल थी आज भी है. उसे सुनने वाले कम ही होते हैं.
@ P.N. Subramanianबहुत धन्यवाद आपका।@ Roshiकम से कम विदुर उस समय बोल् तो थे, आज तो स्तब्धता छायी है।@ संतोष त्रिवेदीहौसला टिका है, साहस लुप्त नहीं हुआ है धरा से, विदुर स्वर उठेगा ही।@ सुशील बाकलीवालबहुत धन्यवाद आपका।@ राज भाटिय़ाजिन्हे विरोध में बोलना था वही समर्थक बन गये हैं।
@ भारतीय नागरिक – Indian Citizenयही तो वर्तमान की पीड़ा है।@ Patali-The-Villageबहुत धन्यवाद आपका।@ रचना दीक्षितयही आशंका तो हम सबको खाये जा रही है।@ Abhishek Ojhaविदुर ज्ञान में साहस भी है।@ विष्णु बैरागीविदुर पर कृष्ण का स्नेह था, जब विदुर जैसे सरलमना की अवहेलना हुयी तभी कृष्ण ने सबसे छल किया।
@ आशीष/ ਆਸ਼ੀਸ਼ / ASHISHसाहस तो देशी जुगाड़ का हिस्सा रहा है। विदुर स्वर उसी का प्रतीक है।@ उन्मुक्तस्वयं कार्य में लग जाना दूसरों को प्रेरित कर सकता है पर बदलाव की वह प्रक्रिया कठिन है। राजदरबारों का प्रभाव सदा ही व्यापक रहा है।@ देवेन्द्र पाण्डेय विदुर साहस का प्रतीक हैं, नीति पक्ष तो निश्चय ही एक विस्तृत व्याख्यान माँगता है।@ मेरे भावहित अहित का विदुर सोचते तो कभी स्वर न उठाते।@ mahendra vermaइतिहास का यह मौन पृष्ठ, महाभारत के सर्वाधिक निनदनीय दृश्य में आस-किरण जैसा है।
@ Khare Aमहाभारत न जाने कितने सामाजिक संदर्भों का स्रोत है।@ Kailash C Sharmaयदि विदुर स्वर उठता रहे तो राजदरबार बेलगाम नहीं होता है।@ Bhushanविदुर का स्वर सदा ही दबा रहा है, पर सत्य उसी में छिपा रहता है।
ज्ञान यदि साहस विहीन हो तो ज्ञानी और निर्जीव पुस्तक में कोई भेद नहीं।मेरे लिए आपके इस आलेख की यह पंक्ति सबसे ज्यादा प्रभावी है और मेरे जीवन का यही उद्देश्य है कुछ ज्ञानी लोगों को भी समाज में साहसी बना सका तो अपने जीवन को सफल मानूंगा क्योकि एक ज्ञानी व्यक्ति भी अगर साहस का परिचय देता है तो देश और समाज सही मायने में आगे बढ़ता है तथा इंसानियत मजबूत होती है……….शानदार आलेख…..
इतिहास आज आस छोड़ चुका है, अपने अस्तित्व पर अश्रु बहाने का मन बना चुका है। अब तक तो भीष्म ही निर्णय लेने से कतरा रहे थे, सुना है, विदुर भी अब रिटायर हो चुके हैं।बड़ी सुंदर तरीके से अपना आलेख खत्म किया है…बहुत अच्छा व्यंग भी….इतिहास और समकालीन परिस्थितियां..बहुत अच्छा लिखा है…
सत्य है… आपका पोस्ट पढ़ते वक़्त पूरा दृश्य यूँही नाच रहा था…अंत बहुत सटीक था… वाकई लगता है विदुर रिटायर हो चुके हैं, और भीष्म तब भी चुप थे, आज भी चुप हैं…
सहज एवं प्रभावशालीलेखन के लिए बधाई! कृपया इसे भी पढ़िए……==============================शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥सद्भावी – डॉ० डंडा लखनवी
aajkal to vidur svar ko log vidrohi svar samajh lete hain…
Sorry for being late.Great post.I have read the Mahabharat several times and have still not understood why the Pandavas are considered heroes.In my humble opinion, there are no heroes in this story.Vidur comes out cleaner than all others.RegardsG Vishwanath
विदुर स्वर तो आज भी यदा-कदा उठते हैं ,परन्तु अतीत की तरह आज भी उनकी या तो अनसुनी की जाती है या दमन … विदुर वचन जैसा ही लगा आपका आलेख ।
देश की ऐसी परिस्थिति है की इतने सारे दुर्योधन हैं की कोई भीष्म या विदुर खड़े होने की जुर्रत भी नहीं करेगा … अब तो कोई कृष्ण ही आकर देश का भला कर सकता है ….वैसे कई कांग्रेसी राहुल को कृष्ण समक्ष खड़े करने में भी पीछे नहीं रहेंगे ….
@ honesty project democracyभगवान करे आपका यह प्रयास सफल हो।@ वीनाअग्रज सिंहासन की निष्ठा से बँधे रहें और अनुजों को मर्यादा का पाठ पढ़ाया जाये तो क्या निष्कर्ष निकलेगा। @ POOJA…जब भीष्म का चुप रहना खटकता है, विदुर का बोलना जीवन रक्षक सा लगता है।@ डॉ० डंडा लखनवीबहुत धन्यवाद आपका।@ amit-niveditaयही समस्या है, तभी विदर राजदरबारों से प्रयाण कर रहे हैं।
@ G Vishwanathसच कहा आपने, विदुर हर परिस्थितियों में बिना मानसिक भार के बाहर आ जाते हैं,बड़ी ज्ञानमयी सरलता के साथ।@ niveditaविदुर का न सुना जाना और विदुर के बारे में न कहा जाना, दोनों ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं।@ दिगम्बर नासवाजहाँ पर विदुर की उपेक्षा होती है, कृष्ण का घातक नीति बनानी पड़ती है।
विदुर की न जब सुनी गई न अब कोई सुनता है….बहुत से विदुर अब भी बडबडा रहे हैं—हां क्रिष्ण कहां हैं….
@ Dr. shyam guptaराजदरबारों ने विदुरों को ही महत्व देना छोड़ दिया है।
अक्षरशः सहमत हूँ, ऊपर सब कह ही दिया गया है।और की प्रतीक्षा है आपसे।
@ Avinash Chandra विदुर नीति तो ज्ञान का भण्डार है, जितना संधान कर पायेंगे सीमित बुद्धि से, व्यक्त करने का प्रयास करेंगे।
Meri tippini per aapke uttar ka bahut bahut dhanyavad.Maine apne blog 'Mansa vacha karmna' per likhna shuru kiya hai.Aapka margdarsan mile aisi abhilasha hai.
@ Rakesh Kumar आपके ब्लॉग पढ़ने का आनन्द लेना प्रारम्भ कर दिया है।