वर्धित सर्वम् स वर्धा – 3
by प्रवीण पाण्डेय
कभी कल्पना करता हूँ कि जीवन में यदि एक स्थान पर ही रहा होता तो कितना कम जान पाता समाज को, देश को, मानवता को। पुस्तकें बहुत कुछ सिखाती हैं पर प्रत्यक्ष अनुभव एक विशेष ही स्थान रखता है जीवन में। यदि वर्धा नहीं जाता तो ब्लॉगरों के व्यक्तित्व मात्र, उनके चित्रों तक ही सीमित रहते, एक ज्ञान भरी पुस्तक की तरह। गांधीजी के आश्रम को बिना देखे उस अनुशासन की कल्पना करना असंभव था जिस पर सत्याग्रह के सिद्धान्त टिके हुये थे।
गीताई, राम हरि |
गांधीजी के प्रथम सत्याग्रही का आश्रम भी वर्धा में ही है, नदी किनारे। गांधी के प्रश्नों का उत्तर भी वहीं मिलना था संभवतः। शब्दों से अधिक कर्म को महत्व देने की जीवटता जिसके अथक अनुशासन का परिणाम रही उसके आश्रम देखने का संवेदन मन में गहरा बैठा था। दधीचि-काया, अन्तरात्मा में वज्र सा आत्मविश्वास, सर्वजन के प्रति पूर्ण वात्सल्य का भाव, शारीरिक-श्रम निर्मित तन, फक्कड़ स्वभाव और नाम विनोबा भावे।
विनोबा का नाम हमारे मन में भूदान आन्दोलन की स्मृतियाँ उभार लाता हैं। जिस देश मे व्यक्तियों को अपनी भूमि से असीम लगाव हो, उस देश में भूदान-यज्ञ विनोबा के योगदान को वृहद-नाद सा उद्घोषित करता है। दस लाख एकड़ भूमि का दान भारत के इतिहास में अद्वितीय था, स्वतःस्फूर्त और मानव की सहृदयता से प्रेरित। यह एक महामानव के मन से प्रारम्भ हुआ और एक जन-आन्दोलन में बदल गया।
हम में से बहुतों को यह ज्ञात न हो कि भूदान आन्दोलन 13 वर्ष चला और इस काल में 70,000 किमी की पदयात्रा की, विनोबा ने। भारत के हर कोने में जन जन के मन में रच बस गया, वह खाँटी भारतीय स्वरूप। जन-सैलाब इस भूदान के महात्मा के दर्शन व अगवानी हेतु खड़ा रहता था और अपने क्षेत्र में अनवरत उनके संग रहता था। नये क्षेत्र में नये समूह, नयी आशा, नया उत्साह मिलता और पृथ्वी अपने महापुत्र को स्वदान का आशीर्वाद बरसाती रहती।
देश को देखने और समझने का इससे अच्छा माध्यम क्या हो सकता है भला? भारतीयता पर ज्ञान के अध्याय उघाड़ चुके विद्वानों का ज्ञान, विनोबा के सम्मुख सदा ही नगण्य रहेगा।
हमारा ज्ञान पुस्तकीय अधिक है, समस्याओं पर हमारी दृष्टि सीमित है और कल्पनाओं के खग अवसर पाते ही हमारे बौद्धिक परिवेश में उड़ने लगते हैं। प्रत्यक्ष जाकर देखने से पता लगता है कि हम कितना कम जानते हैं, वस्तुस्थिति के बारे में।
श्री गौतम बजाज |
आश्रम में उनकी पदयात्रा में संग रहे श्री गौतम बजाज जी से भेंट हुयी। उनसे संस्मरण सुनते सुनते कब सायं हो गयी, पता नहीं चला। यदि ट्रेन पकड़ने की बाध्यता न होती तो रात के भोजन तक वह संस्मरण-नद बहती रहती। उनकी आत्मकथा की पुस्तक से वह कमी संभवतः पूरी न हो पाये, पर भविष्य में भारत-भ्रमण के माध्यम से ज्ञानवर्धन का योग मेरे भाग्य में बना रहे, यही ईश्वर से प्रार्थना है।
वर्धति भारत ज्ञानम्, वर्धति कर्म प्रमाणम्, स वर्धा।
sunder aur achchi jaankari se bhari post… !
छोटी पर भावों से भरी रही आपकी ये यात्रा !विनोवा भावे ही गाँधी के सच्चे अनुयायी थे, बाकी तो बस सरनेम तक ही सीमित रहे ! बढ़िया लगा सरस बहती आपके भावों की धारा में बहके !! बस एक चीज खटकी कि आज आपकी यात्रा के संस्मरणों कि ये आखिरी पोस्ट है 🙂
अच्छा संस्मरण। अच्छी शैली में। शुभकामनाएं।
अच्छा संस्मरण। शुभकामनाएं।
बस अब यही कामना है कि आगे कि आपकी सभी यात्राएं और बड़ी हों ……..आखिर ब्लागरीय स्वार्थ जो है !
विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन की तर्ज पर यदि भारत सरकार आयकर विभाग बंद कर आयकर का नाम कर-दान कर जगह जगह कर-दान इक्कठा करने के पात्र लगादे तो अभी आयकर विभाग पर मोटा खर्चा करने के बाद जितना आयकर इक्कठा होता है उससे दुगुने से ज्यादा कर इक्कठा हो जायेगा |भारतीय जनता दान देने में बहुत ही सहृदय है इस गुण को विनोबा जी की तरह कोई पहचानने वाला चाहिए |
भारत के लिये अच्छी चीजों, बातों, लोगों का कोई मतलब ही नहीं…
पढ कर मन प्रसन्न हुआ। विनोबा का भूदान यज्ञ भारत ही नहीं विश्व के इतिहास में अद्वितीय है।
यह सही है कि आजकल पुस्तकीय ज्ञान ही अधिक है …!अरसे बाद विनोबा जी के बारे में पढना अच्छा लगा …!
विनोबा जी की याद दिलाने के लिए आभार !
इस आलेख/संस्मरण की सजीवता बहुत प्रेरित करती है।संस्मरण और वृत्तांत के द्वारा काफ़ी जानकारी में व्रूद्धि हुई। आभार आपका। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!पक्षियों का प्रवास-२, राजभाषा हिन्दी परफ़ुरसत में …सबसे बड़ा प्रतिनायक/खलनायक, मनोज पर
आपकी वर्धा यात्रा की तीनों पोस्ट पढ़ी. वर्धा की यात्रा का बिल्कुल अलग ही तरह का विवरण है आपकी पोस्ट्स में. बेहतर है हम सबसे वह बांटे जो हमारे मन के भीतर है. अच्छा लगा.
वर्धा के समग्र परिवेश को आपने जिया -इस अर्थ में वर्धा पर और रपटों के परिप्रेक्ष्य में यह श्रृंखला विशिष्ट बन गयी है -बल्कि वर्धा रिपोर्ताज कहिये !
वाकई ऐसे संस्मरण सुनने को मिल जायें तो जाने की इच्छा ही न हो, बहुत सुंदर.. हमें भी विनोवाजी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला।
हमारा ज्ञान पुस्तकीय अधिक है, समस्याओं पर हमारी दृष्टि सीमित है और कल्पनाओं के खग अवसर पाते ही हमारे बौद्धिक परिवेश में उड़ने लगते हैं। प्रत्यक्ष जाकर देखने से पता लगता है कि हम कितना कम जानते हैं, वस्तुस्थिति के बारे में।…..सही है। विनम्र लेखन शैली …पढ़ते वक्त हर कोई बड़ा सहज महसूस करता होगा।
पुस्तकीय-ज्ञान अपने आप में तब तक सम्पूर्णता नहीं प्रदान करता,जब तक उसे निजी अनुभव(यात्रा आदि)के द्वारा नहीं महसूसा जाता!कबीर,नानक,राहुल सांकृत्यायन जैसे यूं ही नहीं घुमक्कड़ी बने थे !वार्ता अच्छी लगी .
बिनोवा जी जैसे एक दो लोगों की आज इस देश और समाज को बहुत जरूरत है ….कास भगवान इन भ्रष्ट कुकर्मी राजनेताओं को बिनोवा जी के मार्ग पर चलने के लिए मजबूर कर देते…
आचार्य विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन का आज के राजनीतिक माहौल पर किंचित भी प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता . आप ऐसे ही भ्रमण करते रहे हम लाभार्थी होगे .
praveen ji aapke blog par aakr nit nai jankariyo ka hame bahut hi labh milta hai.bahut hi vistrit gyan ka bhndar hai aapke paas. हमारा ज्ञान पुस्तकीय अधिक है, समस्याओं पर हमारी दृष्टि सीमित है और कल्पनाओं के खग अवसर पाते ही हमारे बौद्धिक परिवेश में उड़ने लगते हैं। प्रत्यक्ष जाकर देखने से पता लगता है कि हम कितना कम जानते हैं, वस्तुस्थिति के बारे में।aapne bahut hi sahi baat kahi hai.ishwar kare aapki bharat -bhraman ki yatra ka swapn pura ho. poonam
… बहुत सुन्दर … प्रसंशनीय पोस्ट !!!
आपकी वस्तुस्थिति को देखने की एक अलग दृष्टि से हम भी लाभान्वित हुए…कई प्रश्न उठे,मन में….. गाँधी जी ,विनोबा भावे, शास्त्री जी,जयप्रकाश जी…इसके बाद कुछ और नाम आजतक क्यूँ नहीं जुड़ें??…स्वार्थहीन नेताओं-महापुरुषों की गिनती इनसे आगे नहीं बढ़ेगी?बजाज जी के संस्मरण हम पाठकों से भी बाँटें..
गांधी जी व विनोबा जी की स्मृति को नमन॥
आपने वर्धा का संदेश बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रसारित किया। बेहतरीन अभिव्यक्ति।गांधी और विनोबा की धरती आजकल किसानों की आत्महत्या के लिए समाचारों में आती है तो बहुत कष्ट होता है।
प्रवीन जी… आपकी तीनो पोस्ट्स पढ़ी हैं … ब्लॉग्गिंग में नई हूँ इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं है वर्धा अदि के बारे में … आपकी इससे पहले वाली और ये वाली पोस्ट बहुत अच्छी लगी और ज्ञानवर्धक भी … भगवान् आपको आगे भी ऐसे अवसर प्रदान करता रहे , आप अपना अनुभव हमारे साथ बांटते रहे … आभार एवं शुभकामनाएं
.प्रत्यक्ष जाकर देखने से पता लगता है कि हम कितना कम जानते हैं, वस्तुस्थिति के बारे में….पूर्णतया सहमत हूँ आपसे। .
अच्छा संस्मरण, प्रसंशनीय पोस्ट
विनोबा का भूदान यज्ञ इतिहास में अद्वितीय आंदोलन है |
संसमरण, इतिहास, यात्रा वृत्तांत, डायरी के पन्ने…यदि एक अभिव्यक्ति देनी हो तो कह सकता हूँ मील का पत्थर
Vardha ki teeno post padi…bahut hi acha likha hai…sath hi bahut kuch naya janne ko mila…shandar prastuti…Archana
बढ़िया रही आपकी यात्रा और संस्मरण.
श्री गौतम बजाज आश्रम में उनकी पदयात्रा में संग रहे श्री गौतम बजाज जी से भेंट हुयी। उनसे संस्मरण सुनते सुनते कब सायं हो गयी, पता नहीं चला।प्रवीन जी बड़े भाग्यशाली हैं जो ऐसी यात्राएं नसीब होती हैं आपको ….बढ़िया लगा आपका संस्मरण …..
वर्धा के ये तीनों संस्मरण आपने कुछ इस तरह से साझा किये की हम सब के लिए भी स्मरणीय रहेंगें । हार्दिक आभार आपका
@ Anjana (Gudia) बहुत धन्यवाद आपका।@ राम त्यागी गांधीजी से कोई भी मिलने आता था तो वह उसे विनोबा के पास अवश्य भेज देते थे। मेरा भी इस आश्रम में जाना निश्चित ही था।@ हास्यफुहारबहुत धन्यवाद आपका।@ Sunil Kumar बहुत धन्यवाद आपका।@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDIइस छोटी यात्रा में जीवन के तीन अध्याय देखने को मिले। कभी कभी तो वर्ष निकल जाते हैं बिना कुछ भी किये हुये।
@ Ratan Singh Shekhawatविचार बहुत अच्छा है, कई और विभाग भी बन्द किये जा सकते हैं।@ भारतीय नागरिक – Indian Citizenकभी न कभी तो देश का सौभाग्य अँगड़ाई लेगा।@ Smart Indian – स्मार्ट इंडियनकल्पना करने भर से रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि देश की इतनी लम्बी यात्रा करने के लिये अब किसी का साहस भी होगा भला।@ वाणी गीत विनोबा को पढ़ना, कर्म को लेखन से अधिक महत्व देना है।@ सतीश सक्सेनावर्धा के बहाने मेरे मन में विनोबा बने रहे इतने दिन तक, नहीं तो हम कृतध्न देशवासी तो उनको कब का भुला चुके हैं।
@ मनोज कुमारइस यात्रा से मेरे ज्ञान चक्षु भी खुल गये, दो सन्तों का रहन सहन देखने के बाद।@ Manoj Kबहुत अच्छा लगा यह जानकर कि हम सबके मन की तहों में कुछ ऐसा है जो सच्ची महानता को पहचानता है वरना चकाचौंध में हमारे नेत्र अपनी क्षमता खो चुके हैं। @ Arvind Mishraवर्धायात्रा जीवन में बहुत महत्व रखती है, आप भी आते तो यह महत्व और भी बढ़ जाता।@ Vivek Rastogi पर प्रत्यक्ष का महत्व संस्मरण से सदा ही अधिक रहा है।@ देवेन्द्र पाण्डेयऔरों का तो नहीं पर अपनी क्षमताओं का सही मूल्यांकन करने के बाद बहुत सहज लगता है, हल्का भी।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDसत्य कहते हैं आप, अनुभव ही गाढ़े समय काम आता है।@ honesty project democracy आज तो कोई उनकी छाया बनने लायक नहीं है।@ ashishआज तो सब-लूट आन्दोलन चल रहा है, जिसकी जितनी क्षमता हो।@ JHAROKHAवैसे तो बहुत नगर घूम चुका हूँ पर वहाँ तो मुझे अमेरिका बैठा दिखायी पड़ता है।@ 'उदय' बहुत धन्यवाद आपका।
@ rashmi ravija यदि गिनती नहीं बढ़ी तो भविष्य हमारा न होगा, यह बात तय है। बजाजजी ने बहुत संस्मरण सुनाये थे, स्मरण कर लिखने की चेष्टा करूँगा।@ cmpershadदो सन्तों ने दिखाया है कि भारतीयता राजनीति में कैसे उतारी जा सकती है।@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीआप तो वर्धा की प्रेरणा से नित ही झूम रहे हैं। किसानों की आत्महत्या का समाचार सुन केवल यही कह सकते हैं कि देख तेरे इस देश की हालत क्या हो गयी भगवान..@ क्षितिजा …. एक विश्वास तो दृढ़ हुआ है ब्लॉग जगत में कि मन से मन को अच्छा लगने वाला लिखने से सबको भाता है। मन से लिखती रहें, भविष्य आप के नाम पर स्वर्णिम अध्याय लिखने को प्रतीक्षारत है।@ ZEALकई बार पुस्तकीय ज्ञान और कल्पना को धोखा देते हुये देख चुका हूँ।
@ रचना दीक्षित बहुत धन्यवाद आपका।@ नरेश सिह राठौड़इतनी बड़ी संख्या में लोग पहले दान देने के लिये प्रस्तुत नहीं हुये थे।@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने मील का पत्थर बनने के लिये मीलों चलना पड़ेगा, अभी तो यात्रा प्रारम्भ की है, पथप्रदर्शन मिलता रहे। @ zindagi-uniquewoman.blogspot.com वर्धा एक बार जाकर देखने और समझने का स्थान है।@ Udan Tashtariबहुत धन्यवाद आपका।
@ हरकीरत ' हीर'ईश्वर ने वहाँ जाने का भाग्य तो लिखा पर पूरे संस्मरण सुनने का समय नहीं लिखा। मन में एक प्यास बनी रही और जानने की, सम्प्रति एक पुस्तक पढ़ रहा हूँ।@ डॉ॰ मोनिका शर्माएक बार जाकर देखने से स्मृतियाँ और बल पा जायेंगी।
वर्धा, विनोबा भावेजी, भूदान, और गौतम बजाजजी से भेंट के बारे में जानकारी अच्छी लगी।केवल वर्धा का नाम सुना था पर अब किसी दिन वहाँ जाने की इच्छा है।यह इच्छा आपके के लेख पढने के बाद ही जागी है।देर से टिप्प्णी करने के लिए क्षमा चाहता हूँ। आपने अन्य मित्रों की टिप्पणी का उत्तर भी दे दिया।इस टिप्पणी के उत्तर की अपेक्षा नहीं कर रहा हूँ।कृपया कष्ट न करें।आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा।शुभकामनाएमजी विश्वनाथ
अच्छी जानकारी खूबसूरत शैली में .
अपकी तीन पोस्ट निकल गयी और मैं सोयी रही। मुझे लगता था आपका ब्लाग मेरी लिस्ट मे है तो जब पोस्ट आयेगी देख लूँगी। लेकिन आज देख कर हैरान हूँ कि सब से मनपसंद ब्लाग मेरी लिस्ट मे नही। इस लिये पोस्ट का पता नही चला। क्षमा चाहती हूँ आज पिछली पोस्ट्स पढी। वर्धा यात्रा पर जितनी भी पोस्ट पढी उनमे यही पोस्ट भावपूर्ण और रोचक लगी। विनोवा जी को पढे हुये भी तो बहुत समय हो गया था सार्थक संस्मरण । धन्यवाद्।
प्रवीण जी ,जिस निजता में गूँथ कर आपने ये पोस्टें लिखी हैं वह,बिना किसी प्रयास मन तक उतर जाती हैं .डूब कर लिखने का प्रभाव ही तो ,आभार .
achha laga padhkar ……….bdhai
@ G Vishwanathदो महात्माओं के प्रयोगों की भूमि रही है वर्धा। वहाँ पहुँचकर स्वतः ही विचार प्रवाह गतिशील हो जाता है।@ shikha varshney बहुत धन्यवाद आपका।@ निर्मला कपिलाविनोबाजी और गांधीजी के ऊपर पोस्ट पढ़ना आपके भाग्य में था, आपने पढ़ ली। पर क्या ये दोनों महात्मा मेरे देश के भाग्य में है?@ प्रतिभा सक्सेनाडूबकर बाहर निकला तभी लिख पाया। जो अनुभव हुआ, वह लिखा, संभवतः स्थान का प्रभाव रहा होगा।@ रजनी मल्होत्रा नैय्यरबहुत धन्यवाद।
!! सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा !!
वर्धा सम्मेलन आपके साथ-साथ बहुत लोंगों को बहुत कुछ दे गया है। काश ऎसे सम्मेलन और हो पाते!आपके साथ ज्ञान की त्रिवेनी में गोता लगाकर अच्छा लगता है।
@ जय हिन्दभारत में खाँटी कर्मशील नरों के उदाहरण मिलेगें आपको बहुतायत में, यहाँ परम्परा रही है।@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशनमेरी भी अभिलाषा यही है कि ऐसे सम्मेलन और भी आयोजित हों।
bahut saras treeke se aapne ham sabhee logo ki bhee yatra karva dee..bahut hee achchha post
very inspiring post. Great!!
@ VIJAY KUMAR VERMA विनोबा का चरित्र, एक खाँटी भारतीय चरित्र है, अनुकरणीय।@ Shraddhaबहुत धन्यवाद आपका।