त्रासदियाँ

by प्रवीण पाण्डेय

साल2018...जगहलखनऊ से 58 किलोमीटर दूर हसनपुर में अमेरिकन न्युक्लियर पावर प्लांट। एक तेज़ धमाका। फिर कुछ और धमाके। उसके बाद क्या, कहां, कैसे, क्यूं जैसे कुछ बेमानी से सवालअमेरिकन कंपनी पर 500 करोड़ का जुर्माना। और हां, 40 हज़ार इंसानी मौतें और खरबों की संपत्ति मिट्टी के हवाले। लेकिन, इस बारे में बात करने का कोई फ़ायदा नहीं क्यूंकि इस जानमाल के बदले मिल तो गया 500 करोड़। और क्या चाहते हैं। न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल में यही तय हुआ था न।
प्रबुद्धजी व्यस्त पुरुष हैं अतः गोता लगा कर अगले 8 वर्ष आगे का समाचार ही ला पाये । सप्ताहान्त में पूरे समय मैं गोते में ही रहा और ढूढ़कर लाया इस हादसे पर चल रहे मुकदमे के निर्णय का क्षण । बस पढ़ लें आप एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र में प्रकाशित यह समाचार ।
सन 2050, 32 साल की मुकदमेबाजी के बाद आज न्यायालय ने लखनऊ न्यूक्लियर त्रासदी का निर्णय सुना दिया है । सारे पक्षों के अनवरत तर्क सुनने के पश्चात इस त्रासदी का उत्तरदायी उस चौकीदार को माना है जिसने त्रासदी को पॉवर प्लांट से बिना गेट परमिट बनवाये ही निकल जाने दिया । अपने चौकीदारीय कर्तव्य का निर्वाह न करने के लिये उन्हे 2 महीने के सश्रम कारावास का दण्ड सुनाया गया है । सभी पक्षों ने इस निर्णय का स्वागत किया है और इसे देर से किन्तु सही दिशा में लिया गया कदम बताया है ।

इतिहास से सीख लेने की परिपाटी को निभाने के लिये तत्कालीन सरकारों की भी भूरि भूरि प्रशंसा हुयी है । भोपाल गैस कांड के समय की गयी गलतियों को ठीक करके हमने अपना सुधारात्मक चरित्र पूरी दुनिया को समझा दिया है । आपको बताते चलें कि इस बार विदेशी दोषियों को भगाने में विशेष सावधानी बरती गयी । धारायें ऐसी लगायी गयीं जिस पर 32 साल बाद भी प्रतिपक्ष कोई विवाद का विषय न बना सके । एक विशेष विक्रम ऑटो से एयरपोर्ट तक भेजा गया और प्राइवेट एयरलाइन का उपयोग कर सीधे विदेश भेज दिया गया । उस समय सारे सरकारी वाहन उस रोड से हटा लिये गये थे । उनके भागने के रास्ते में कोई भी सरकारी चिन्ह सहायता करता हुआ नहीं दिखा । विदेश नीति के विशेषज्ञों ने इसे एक महत्वपूर्ण और सोचा समझा हुआ कदम बताया था । जहाँ एक ओर अमेरिकन सरकार ने भारत के इस प्रयास की भूरि भूरि प्रशंसा कर इसे लोकतन्त्र की परिपक्वता का एक प्रमाण बताया वहीं दूसरी ओर, भारत की विदेश नीति को आगे भी अवसर मिलता रहे, इसके लिये 5 नये न्यूक्लियर पॉवर प्लांट शून्य प्रतिशत ब्याज पर लगाने की घोषणा की है ।
 
कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने इस त्रासदी के निर्णय में पिछले निर्णयों से 6 वर्ष अधिक लेने पर सरकार की कार्य क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाया है । सरकार के प्रवक्ता ने उन्हें सरकारी कामकाज के तरीकों को बिना सोचे समझे बयानबाजी न करने की सलाह दी और लॉ विल टेक इट्स ओन कोर्स पर हुये पिछले 50 वार्षिक सेमिनारों की रिपोर्टें भी अध्ययन करने को कहा । बताया जाता है कि 40000 मृतकों की पहचान व फाइलें बनाने में इतना समय लगा ।

वहीं दूसरी ओर कुछ पीड़ितों ने यह दावा किया कि इसमें न्यूक्लियर प्लांट का कोई दोष नहीं, क्योंकि हवा के प्रदूषण से वैसे ही दो माह में उनकी मत्यु होने वाली थी । उन्हे तो इस त्रासदी से लाभ ही हुआ । वैज्ञानिक बताते हैं कि न्यूक्लियरीय विकिरण के कुछ विशेष गुणों से उनमें प्रदूषण प्रतिरोधी कोशिकाओं का विकास हुआ जिसके फलस्वरूप वे 32 वर्ष और जी सके । इस उपलब्धि के लिये जहाँ एक ओर उस कम्पनी को भौतिकी, रासायनिकी व शान्ति के नोबल पुरस्कारों से सम्मानित किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कई प्रदूषित शहरों में इस तरह के त्रासदीय न्यूक्लियर पॉवर प्लांट लगाने के लिये राज्य सरकारें उत्सुक दिख रही हैं । बढ़ती माँग देखकर कम्पनी ने प्लांट की डिजाइन व त्रासदी की विधि का पैटेन्ट करा लिया है ।

अमेरिकन कम्पनी पर 500 करोड़ की जुर्माने की बात पर भी भारत ने अपऩी स्थिति आज स्पष्ट कर दी । मित्र राष्ट्र होने के नाते यह राशि भारत ने अपने खजाने से देकर मित्रता को और प्रगाढ़ कर लिया है और साथ ही साथ एक जुट खड़े हुये देशवासियों को टैक्स के माध्यम से दिवंगतों को श्रद्धान्जलि देने का अवसर भी प्रदान किया है ।
यदि त्रासदियों से इतने लाभ हों, तो त्रासदियाँ तो अच्छी हुयी ना ।