माना तुमको गुड्डे गुड़िया पुस्तक से प्रिय लगते हैं,
माना अनुशासन के अक्षर अनमन दूर छिटकते हैं,
माना आवश्यक और प्यारी लगे सहेली की बातें,
माना मन में कुलबुल करती बकबक शब्दों की पातें,
पर पढ़ने के आग्रह सम्मुख, प्रश्न न कोई खड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।१।
विद्यालय जाना बचपन का एक दुखद निष्कर्ष सही,
रट लेने की पाठन शैली लिये कोई आकर्ष नहीं,
उच्छृंखल मंगल में कैसे भाये सध सधकर चलना,
बाहर झमझम बारिश, सूखे शब्दों से जीवन छलना,
पर भविष्य को रखकर मन में, वर्तमान से लड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।२।
बालमना हो, बहुत खिलौने तुमको भी तो भाते हैं,
मन में दृढ़ हो जम जाते हैं, सर्वोपरि हो जाते हैं,
पढ़ने का आग्रह मेरा यदि, तो तुम राग वही छेड़ो,
केवल अपनी बातें मनवाने को दोष तुरत मढ़ दो,
आज नहीं तो कल आयेंगे, हठ पर न तुम अड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।३।
नहीं अगर कुछ हृदय उतरता, झरझर आँसू बहते क्यों,
बस प्रयास कर लो जीभर के, ‘न होगा यह’ कहते क्यों,
देखो सब धीरे उतरेगा, प्रकृति नियम से वृक्ष बढ़े,
बीजरूप से महाकाय बन, नभ छूते हैं खड़े खड़े,
बस कॉपी में सुन्दर लेखन, हीरे मोती जड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।४।
शब्द शब्द से वाक्य बनेंगे, वाक्य तथ्य पहचानेंगे,
तथ्य संग यदि, निश्चय तब हम जग को अच्छा जानेंगे,
ज्ञान बढ़े, विज्ञान बढ़े, तब आधारों पर निर्णय हो,
दृष्टि वृहद, संचार सुहृद, तब क्षुब्ध विषादों का क्षय हो,
आनन्दों का आश्रय होगा, शब्दों से नित जुड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।५।
है अधिकार पूर्ण हम सब पर, घर में जो है तेरा है,
एक समस्या, आठ हाथ हैं, संरक्षा का घेरा है,
सबका बढ़ना सब पर निर्भर, यह विश्वास अडिग रखना,
संसाधन कम पड़ते रहते, मन का धैर्य नहीं तजना,
छोटे छोटे अधिकारों पर, भैया से मत लड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।६।
यही एक गुण भेंट करूँगा, और तुम्हें क्या दे सकता,
जितना संभव होगा, घर की जीवन नैया खे सकता,
एक सुखद बस दृश्य, खड़ी तुम दृढ़ हो अपने पैरों पर,
सुख दुख तो आयें जायेंगे, रहो संतुलित लहरों पर,
निर्बन्धा हो, खुला विश्व-नभ, पंख लगा लो, उड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।७।
क्या बनना है, निर्भर तुम पर, स्वप्न तुम्हे चुन लाने हैं,
मन की अभिलाषा पर तुमको अपने कर्म चढ़ाने हैं,
साथ रहूँगा, साथ चलूँगा, पर निर्भरता मान्य नहीं,
राह कठिनतम आये, आये, तुम भी हो सामान्य नहीं,
तुम सब करने में सक्षम हो, स्वप्न हृदय का बड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।८।
है पितृत्व का बोध हृदय में, ध्यान तुम्हारा रखना है,
मिला दैव उपहार, पालना सृष्टि श्रेष्ठ संरचना है,
रीति यही मैं रीत रहूँ, लेकिन तू जिस घर भी जाये,
प्रेम हृदय में संचित जितना, उस घर जाकर बरसाये,
मेरे मन में, यह दृढ़निश्चय, नित-नित थोड़ा बड़ा करो,
मेरी बिटिया पढ़ा करो।९।
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मेरी बिटिया…पढ़ा करो |