एक लेखक की कई पुस्तकें एक सूत्रीय विचारधारा व्यक्त करती हुयी लग सकती हैं। दो लेखकों की पुस्तकों में भी कुछ न कुछ साम्य निकल ही आता है, तीन लेखकों में यही समानता उत्तरोत्तर कम होती जाती है, पर जब लगातार 7 लेखकों की लगभग 36 पुस्तकों में एक ही सिद्धान्त रह रह कर उभरे तब सन्देह होने लगता है, ईश्वर की योजना पर। वही प्रारूप, वही योजना, वही सन्देश, कहाँ ले जाने का षड़यन्त्र रच रहे हो, हे प्रभु। मान लिया कि पढ़ने में रुचि है, पर उसका यह अर्थ तो नहीं कि अब पुस्तकों के माध्यम से वही बात बार बार संप्रेषित करते रहोगे !
मेरे जीवन की जिज्ञासा आपकी भी बनकर न रह जाये अतः पहले ही आगाह कर देना चाहता हूँ इस पोस्ट के माध्यम से। पहला तो यह कि कितनी भी रोचक हों, इनमें से किसी भी लेखक की सारी पुस्तकें न पढ़ें, यह लेखक के विचारों को आपके मन में सान्ध्र नहीं होने देगा। दूसरा यह कि इन 7 लेखकों में से किन्ही दो या तीन लेखकों को न पढ़ें, यह उस विचार को आपके मन में धधकने से बचा लेगा। पिछले तीन वर्षों में 36 पुस्तकें पढ़, हम यह दोनों भूल कर बैठे हैं, आप न करें अतः शीघ्रातिशीघ्र आगाह कर अपनी आत्मीयता प्रदर्शित कर रहे हैं।
सर्वप्रथम तो सन्दर्भार्थ उन पुस्तकों का विवरण यहाँ पर दे रहा हूँ।
लेखक
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पुस्तकें
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रॉबिन शर्मा
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‘द मोन्क व्हू सोल्ड हिज़ फेरारी‘ से ‘द ग्रेटनेस गाइड‘ तक 9 पुस्तकें
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मार्शल गोल्ड स्मिथ
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मोज़ो
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रहोन्डा बर्न
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सीक्रेट
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पॉलो कोल्हो
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‘द एलकेमिस्ट‘ से ‘विनर स्टैंड एलोन‘ तक 14 पुस्तकें
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जेम्स रेडफील्ड
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‘द सेलेस्टाइन प्रोफेसी‘ से ‘द सीक्रेट ऑफ सम्भाला‘ तक 4 पुस्तकें
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ब्रायन वीज़
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‘मैनी लाइफ, मैनी मास्टर्स‘ से ‘मेडीटेशन‘ तक 6 पुस्तकें
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वेद व्यास
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श्रीमद भगवतगीता
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भगवतगीता को छोड़कर सारी पुस्तकें अंग्रेजी में पढ़ीं, अंग्रेजी सीखने में हुये कष्ट का मूल्य अधिभार सहित वसूल जो करना है। साथ ही सारी पुस्तकें मेरे शुभचिन्तकों द्वारा भिन्न भिन्न कालखण्डों में सुझायी गयीं। पढ़ना जिस क्रम में हुआ, उस क्रम में लेखकों को न रख विचार सूत्र के क्रम में व्यवस्थित किया है। सभी पुस्तकें अपने प्रस्तुत पक्ष में पूर्ण हैं और चिन्तन की जो भावी राहें खोल जाती हैं, उसे आगे ले जाने का कार्य अन्य पुस्तकें करती हैं। सभी पुस्तकों का विवरण एक साथ देने का उद्देश्य उस विचार सूत्र को उद्घाटित करना है जो उसे तार्किकता के निष्कर्ष तक ले जाने में सक्षम है। सार यह है।
वैचारिक विश्व भौतिक विश्व से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि आपकी वैचारिक प्रक्रिया भौतिक जगत बदल देने की क्षमता रखती है। वैचारिक दृढ़निश्चय से आप कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं। अतः आपकी मनःस्थिति का उपयोग परिवेश में उत्साह और प्रसन्नता भरने के लिये किया जाना चाहिये, इसके निष्कर्ष आश्चर्यजनक होते हैं। विचारों का एक अपना जगत है, आप जो सोचते हैं वह विचारजगत से अपने जैसे अन्य विचारों को आकर्षित कर लेता है जिससे उस विषय में आपके विचार प्रवाह को बल मिलता है। नकारात्मक विचार अपने जैसा प्रभाव आकर्षित करते हैं। आप यदि भयग्रस्त हैं तो आपके विरोधी को उस विचार से मानसिक बल मिलेगा आपको और सताने का, आपकी आशंकायें इसी कारण से सच होने लगती हैं। नकारात्मक विचारों को सकारात्मकता से पाट दें। आपका दृढ़निश्चय जितना घनीभूत होता जाता है, परिस्थितियाँ उतनी ही अनुकूल होती जाती हैं, कई बार तो आपको विश्वास ही नहीं होता कि सारा विश्व आपके विचारानुसार कार्यप्रवृत्त है। आपका जीवन, आपका विश्व आपके विचारों से ही निर्धारित है, सृजनात्मक शक्तियाँ प्रचुर मात्रा में अपना आशीर्वाद लुटाने को व्यग्र हैं। मृत्यु के समय की यह विचार स्थिति आपका अगला जीवन, आपका परिवेश और यहाँ तक कि आपके सम्बन्धियों का भी निर्धारण करती है। आप माने न माने, आप जिनसे अत्यधिक प्रेम करते हैं या अत्यधिक घृणा करते हैं, वह आपके अगले जीवन में आपके संग उपस्थित रहने वाले हैं। आपके जीवन की अनुत्तरित विशेष घटनायें आपके आगामी जीवन में कुछ न कुछ प्रभाव लिये उपस्थित रहती हैं। अतः विचारों को महत्तम मानें और पूरा ध्यान रखें उनकी गुणवत्ता पर।
इतनी पुस्तकों को कुछ शब्दों में व्यक्त करना कठिन है, पर भारतीय दर्शन के वेत्ताओं को यह विचार सूत्र बहुत ही जाना पहचाना लगता है। भगवतगीता को घर की मुर्गी दाल बराबर समझने की मानसिकता उस समय वाष्पित हो जायेगी जब शेष 35 पुस्तकों के निष्कर्ष आपको भगवतगीता पुनः समझने को उत्प्रेरित करेंगे। इन पुस्तकों को पढ़ने का श्रेष्ठतम लाभ भगवतगीता में मेरी आस्था का पुनः दृढ़ होना है।
आपको पुनः चेतावनी दे रहा हूँ, एक तो इतना व्यस्त रहें कि पुस्तकों की दुकान जाने का समय न मिले। यदि मिले भी तो आप याद कर के इन पुस्तकों को न खरीदे। यदि लोभ संवरण न कर पायें तो घर में लाकर बस सजाने के लिये रख दीजिये। अन्ततः इतने भौतिक प्रपंच पल्लवित कर लीजिये कि पढ़ने का समय न मिले। फिर भी यदि आप नहीं माने और पढ़ ही लिया तो आपके अन्दर आये परिवर्तन का दोष मुझे मत दीजियेगा क्योंकि वह विचार भौतिक जगत से अधिक ठोस होगा।
(निशान्त के द्वारा अंग्रेजी के कई श्रेष्ठ विचारों को हिन्दी में अनुवाद कर प्रस्तुत करने का एक महत कार्य हो रहा है, उन जैसे अन्य प्रयासों को समर्पित है यह पोस्ट।)