चेतन भगत और शिक्षा व्यवस्था
by प्रवीण पाण्डेय
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क्रान्ति की शान्ति |
चेतन भगत की नयी पुस्तक रिवॉल्यूशन २०२० कल ही समाप्त की, पढ़कर आनन्द आ गया। शिक्षा व्यवस्था पर एक करारा व्यंग है यह उपन्यास। शिक्षा से क्या आशा थी और क्या निष्कर्ष सामने आ रहे हैं, बड़े सलीके से समझाया गया है, इस उपन्यास में।
इसके पहले कि हम कहानी और विषय की चर्चा करें, चेतन भगत के बारे में जान लें, लेखकीय मनःस्थिति समझने के लिये। बिना जाने कहानी और विषय का आनन्द अधूरा रह जायेगा।
चेतन भगत का जीवन, यदि सही अर्थों में समझा जाये, वर्तमान शिक्षा व्यवस्था को समझने के लिये एक सशक्त उदाहरण है। अपने जीवन के साथ हुये अनुभवों को बहुत ही प्रभावी ढंग से व्यक्त भी किया है उन्होंने। फ़ाइव प्वाइण्ट समवन में आईआईटी का जीवन, नाइट एट कॉल सेन्टर में आधुनिक युवा का जीवन, थ्री मिस्टेक ऑफ़ माई लाइफ़ में तैयारी कर रहे विद्यार्थी का जीवन, टू स्टेट में आईआईएम का जीवन और इस पुस्तक में शिक्षा व्यवस्था का जीवन। हर पुस्तक में एक विशेष पक्ष पर प्रकाश डाला गया है, या संक्षेप में कहें कि शिक्षा व्यवस्था के आसपास ही घूम रही है उनकी उपन्यास यात्रा।
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चैतन्य चेतन |
जिसकी टीस सर्वाधिक होती है, वही बात रह रहकर निकलती है, संभवतः यही चेतन भगत के साथ हो रहा है। पहले आईआईटी से इन्जीनियरिंग, उसके बाद आईआईएम से मैनेजमेन्ट, उसके बाद बैंक में नौकरी, सब के सब एक दूसरे से पूर्णतया असम्बद्ध। इस पर भी जब संतुष्टि नहीं मिली और मन में कुछ सृजन करने की टीस बनी रही तो लेखन में उतरकर पुस्तकें लिखना प्रारम्भ किया, सृजन की टीस बड़ी सशक्त जो होती है। कई लोग कह सकते हैं कि जब लिखना ही था तो देश का इतना पैसा क्यों बर्बाद किया। कई कहेंगे कि यही क्या कम है उन्हें एक ऐसा कार्य मिल गया है जिसमें उनका मन रम रहा है। विवाद चलता रहेगा पर यह तथ्य को स्वीकार करना होगा कि कहीं न कहीं बहुत बड़ा अंध स्याह गलियारा है शिक्षा व्यवस्था में जहाँ किसी को यह नहीं ज्ञात है कि वह क्या चाहता है जीवन में, समाज क्या चाहता है उसकी शिक्षा से और जिन राहों को पकड़ कर युवा बढ़ा जा रहा है, वह किन निष्कर्षों पर जाकर समाप्त होने वाली हैं। इस व्यवस्था की टीस उसके भुक्तभोगी से अधिक कौन समझेगा, वही टीस रह रहकर प्रस्फुटित हो रही है, उनके लेखन में।
कहानी में तीन प्रमुख पात्र हैं, गोपाल, राघव और आरती। गोपाल गरीब है, बिना पढ़े और अच्छी नौकरी पाये अपनी गरीबी से उबरने का कोई मार्ग नहीं दिखता है उसे। अभावों से भरे बचपन में बिताया समय धन के प्रति कितना आकर्षण उत्पन्न कर देता है, उसके चरित्र से समझा जा सकता है। शिक्षा उस पर थोप दी जाती है, बलात। राघव मध्यम परिवार से है, पढ़ने में अच्छा है पर उसे जीवन में कुछ सार्थक कर गुजरने की चाह है। आईआईटी से उत्तीर्ण होने के बाद भी उसे पत्रकार का कार्य अच्छा लगता है, समाज के भ्रष्टाचार से लड़ने का कार्य। आरती धनाड्य परिवार से है, शिक्षा उसके लिये अपने बन्धनों से मुक्त होने का माध्यम भर है।
वाराणसी की पृष्ठभूमि है, तीनों की कहानी में प्रेमत्रिकोण, आरती कभी बौद्धिकता के प्रति तो कभी स्थायी जीवन के प्रति आकर्षित होती है। तीनों के जीवन में उतार चढ़ाव के बीच कहानी की रोचकता बनी रहती है। कहानी का अन्त बताकर आपकी उत्सुकता का अन्त कर देना मेरा उद्देश्य नहीं है पर चेतन भगत ने इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि इस पुस्तक पर भी एक बहुत अच्छी फिल्म बनायी जा सकती है।
कहानी की गुदगुदी शान्त होने के बाद जो प्रश्न आपके सामने आकर खड़े हो जाते हैं, वे चेतन भगत के अपने प्रश्न हैं, वे हमारे और हमारे बच्चों के प्रश्न हैं, वे हमारी शिक्षा व्यवस्थता के अधूरे अस्तित्व के प्रश्न हैं।
प्रश्न सीधे और सरल से हैं, क्या शिक्षा हम सबके लिये एक सुरक्षित भविष्य की आधारशिला है या शिक्षा हम सबके लिये वह पाने का माध्यम है जो हमें सच में पाना चाहिये।
मैं आपको यह नहीं बताऊँगा कि मैं क्या चाहता था शिक्षा से और क्या हो गया? पर एक प्रश्न आप स्वयं से अवश्य पूछें कि आज आप अधिक विवश हैं या आपके द्वारा प्राप्त शिक्षा। चेतन भगत तो आज अपने मन के कार्य में आनन्दित हैं, सारी शिक्षा व्यवस्था को धता बताने के बाद।
प्रत्येक पुस्तक कुछ कहती है।
एक दिन छठी कक्षा के बच्चों से प्रश्न किया था,शिक्षा से क्या होता है ,अधिकतर बच्चों ने कहा बड़े आदमी बनेंगे,कुछ ने कहा ,डॉक्टर,इंजिनियर बनेंगे, पर मैं उत्तर की प्रतीक्षा में अभी था.एक लड़के ने उत्तर दिया,'हम अच्छे इन्सान बनेंगे',मैंने उसे शाबाशी दी.अकसर हम कक्षा में पाठ्यक्रम से इतर बच्चों को बताया करते हैं कि केवल परीक्षा देने और जीविकोपार्जन के लिए नहीं पढाई की जाती,इससे हमें सही-गलत चीज़ों की 'समझ' आती है !निश्चित ही यह उपन्यास हमारा मनोरंजन करेगा,फिल्म के द्वारा भी , पर इस व्यवस्था को तो ऐसे ही चलना है !
शिक्षा व्यवस्था में खोट है तब तो स्वयं को विकसित मानव कह कर अराजकतावादी हो रहे हैं सब . सीधा अर्थ है असंतुष्टि .
प्रवीण जी,चेतन की यह पुस्तक अभी पढ़ नहीं सका हूँ। पिछली दोनों पुस्तकें निश्चय ही दमदार थीं। उन दोनों पुस्तकों के हिन्दी संस्करण होने चाहिए थे।
चेतन भगत का वैचारिक मंथन हमेशा गहरा ही होता है….. शिक्षा व्यवस्था को लेकर उनके मन की टीस और उनका लेखन बहुत सोचने को विवश करता है |
पहले तो चेतन भगत की इस नयी कृति से परिचय कराने के लिए आभार! अपरंच, शिक्षा का तो कोई विकल्प नहीं है मगर यह एक शाश्वत सा सवाल बन गया है कैसी शिक्षा ? मात्र उदर पूर्ति के लिए शिक्षा या फिर वह शिक्षा जिसके लिए कहा गया है -या शिक्षा सा विमुक्तये! मनुष्य को जीवन की किसी भी नकारात्मकता से पूर्णतया विमुक्त कर देना ही शिक्षा का असली और उदात्त मकसद है …..मगर हमने जैसा अपने भी कहा अपने लिए खुद ऐसे भूल भुलैये बना दिए हैं जिससे निकलना मुश्किल हो गया है -चेतन ऐसी ही विसंगतियों को उभारने और हमें आईना दिखने में पारंगत होते जा रहे हैं …एक लम्बी बहस है प्रवीण जी -हम कितने ही वहां नहीं हैं जहां हमें होना था अर्थात कितने ऐसी जगहों पर रह गए जहाँ उन्हें नहीं होना था ……
शिक्षा व्यवस्था की खामियां जो चेतन भगत ने बताई हैं वे तो सबको पता हैं। वे कोई वैकल्पिक व्यवस्था बताते तो बेहतर होता। 🙂
..पढ़ना पड़ेगा।
शिक्षा एक सार्थक जीवन का आधार है ….
पुस्तक पढ़ी नहीं है अभी। पढ़नी होगी।
चेतन भगत के अपने प्रश्न हैं, वे हमारे और हमारे बच्चों के प्रश्न हैं, वे हमारी शिक्षा व्यवस्थता के अधूरे अस्तित्व के प्रश्न हैं।हमारी शिक्षा व्यवस्था का अधूरा अस्तित्व तो विचारणीय है ही …चेतन भगत का कार्य सराहनीय है जो अपने लेखन से इस ओर सबका ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं ….बहुत लोग सोचेंगे तब ही कोई राह निकलेगी ….वर्ना व्यवस्था के हाथों बहुत युवा परेशान हो रहे हैं …..और एक टीस भरा जीवन जीने पर विवश हैं …सार्थक प्रस्तुति .
चेतन भगत को पढने की इच्छा है , इस पुस्तक की जानकारी देने के लिए आभार !
हमारे देश की व्यवस्थाओं में बहुत कुछ ऐसा है जो हम सब जानते हैं , उसे समस्या के रूप में रख भी सकते हैं ,मगर निराकरण नहीं है …बहुत कुछ घटता है हमारे आस -पास जो हमें आक्रोशित करता है मगर हम चाह्ते हुए भी लिख नहीं पाते क्योंकि लिखने से ही कुछ समाधान होता नहीं है , जब तक कोई बेहतर विकल्प नहीं है !बहुत सी पोस्ट ऐसे ही ड्राफ्ट में पड़ी रह जाती हैं , चेतन जी लिख देते हैं !
यह सच है कि वर्तमान शिक्षा आत्म संतुष्टि नहीं देती। इसलिए मैंने तो जबरन लादी गयी शिक्षा का आवरण उतारकर फेंक दिया और अपनी पसन्द का कार्य, लेखन एवं सामाजिक कार्य कर रही हूं। जीवन को अपनी मर्जी से जीने का प्रयास कर रही हूं।
प्रवीण जी, आज असहमत होने की अनुमति चाहूँगा। :)मैंने सिर्फ 'वाराणसी' नाम होने की वजह से यह किताब पढ़ी है, और सच कहता हूँ इतना ठगा कभी नहीं महसूस किया।हाँ एक कथन "इस पर भी फिल्म बन सकती है" से पूर्ण रूप से सहमत हूँ।
वाकई… शिक्षा के द्वारा जो चाहा जा रहा है वह प्राप्त नहीं हो रहा है…
शिक्षा व्यवस्था ही तो सोचने को मजबूर करती है
हा हा हा…
कुछ दिन पहले मैंने भी इसे ख़त्म किया, मुझे भी यह किताब अच्छी लगी | इससे पहले मैंने इस लेखक द्वारा ३ मिस्टेकस और २ स्टेटस पढ़ी हैं, वो भी अच्छी ही थी | 🙂 शिल्पा
शिक्षा व्यवस्था और हमारी अपेक्षाएं …कहीं न कहीं कुछ रह जाता है …बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार ।
शिक्षा का प्रयोजन सुप्त पड़ी हुई नैसर्गिक प्रतिभा को निखारना होना चाहिए ! इस प्रकार उभरकर निखरकर बाहर आने वाली प्रतिभा में स्वतः एवं सहज ही शतप्रतिशत उर्जा का प्रवाह हो जाता है ! उस प्रतिभा के आधार से आजीविका भी सरलता से चल सकती है और अतिरिक्त उर्जा समाज हित में नियोजित की जा सकती थी ! परन्तु वर्तमान शिक्षा पद्धति में भोतिकतावादी दृष्टिकोण का विकास किया जाता है और प्रतिभा का दमन किया जाता है आज के स्कूल केवल पैसा पैदा करने की मशीन का निर्माण कारखाना बन कर रह गए है ! कैसे अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सकता है इस बात का शोध ही गहनता से बड़े बड़े संस्थानों में हो रहा है ! विद्यार्थियों के अन्दर छुपे हुए talent प्रतिभा को खोज कर पहचान कर उनकी रूचि और स्वभाव के अनुरूप शिक्षा प्रदान कर उनकी शतप्रतिशत उर्जा को देश हित समाज हित में नियोजित किया जाना चाहिए जिससे वास्तविक रूप में एक शांत सुखी रूडीमुक्त प्रगतिशील समाज की स्थापना हो ! जहाँ पैसे की वरीयता सबसे अंतिम क्रम में हो
मुझे पहले की पुस्तकों से कुछ कम लगी, शिक्षा आजकल पैसे कमाने का ही माध्यम बन कर रह गयी है..कॉलेजों से निकल कर बच्चे बिगड़ ज्यादा रहे हैं आदर्शों की बात तो दूर अपना नियमित जीवन भी ठीक से चलायें इसकी समझ भी खोती जा रही है, अनुशासन नहीं रहा.
प्रवीण जी यह उपन्यास तो अभि नहीं पढ़ा पर शिक्षा व्यवस्था की ये कमजोरियां जाने कब से दिमाग में चल रही हैं. हमारे यहाँ पढाया तो जाता है पर क्या शिक्षित किया जाता है सही मायनो में? वाकई लंबी बहस का मुद्दा है.
pustak samikshaa ko pankh lag gaye hain इसी परवाज़ से रिसा है चेतन भगत एक कृतित्व और व्यक्तित्व .सधी हुई पुस्तक समालोचना संक्षिप्त और उत्तेजक निमंतार्ण देती पुस्तक को पढने का .
chetan bhagat mere pasandeeda lekhkon me se ek hai islie nahi ki wo kuch bahut hi extra ordinary likhte hai par islie ki ki wo jeevan likhte hai…mujhe bhi lagta hai ek din aaega jab main apni advertising,public relation,banking ki padhai ye sare bikhre bikhre work experience ko chor chorkar sirf aur sirf likhne lagungi…kyunki me apne andar bhi kabhi kabhi ye bhatkaav mahsoos karti hu….aapka lekh bahut accha laga.abhi padhi nahi book sochti hu aaj hi kharid lu
"चेतन भगत तो आज अपने मन के कार्य में आनन्दित हैं, सारी शिक्षा व्यवस्था को धता बताने के बाद।"मुझे ऐसा नहीं लगता…लिखने के लिए भी अनुभव ग्रहण करने पड़ते हैं….अगर आज चेतन भगत इन विषयों पर लिख पा रहे हैं…तो सिर्फ इसलिए कि उन्होंने इन जिंदगियों को बहुत करीब से देखा है.
He writes nicely but solutions are missing in his writings.
्चेतन भगत की कोई पुस्तक तो नही पढी मगर जहाँ तक शिक्षा के बारे मे नज़रिया है वो ये है कि शिक्षा ना केवन एक अच्छा इंसान बना सकती है बल्कि आपकी सोच को भी व्यापकता देती है जिसे किसी भी सृजनशील कार्य मे प्रयोग किया जा सकता है और देश और समाज को एक खूबसूरत जीने लायक ढांचा दिया जा सकता है मगर इसके लिये समग्रता से प्रयास करना जरूरी है नही तो शिक्षा सिर्फ़ अर्थोपार्जन का माध्यम ही बन कर रह जायेगी।
्चेतन भगत की कोई पुस्तक तो नही पढी मगर जहाँ तक शिक्षा के बारे मे नज़रिया है वो ये है कि शिक्षा ना केवन एक अच्छा इंसान बना सकती है बल्कि आपकी सोच को भी व्यापकता देती है जिसे किसी भी सृजनशील कार्य मे प्रयोग किया जा सकता है और देश और समाज को एक खूबसूरत जीने लायक ढांचा दिया जा सकता है मगर इसके लिये समग्रता से प्रयास करना जरूरी है नही तो शिक्षा सिर्फ़ अर्थोपार्जन का माध्यम ही बन कर रह जायेगी।
शिक्षा से यही हो सकता है. और क्या हो सकता है….. महावीर, बुद्ध , गाँधी, न्यूटन, एडिशन, आइन्स्टीन बनाने के लिए औपचारिक शिक्षा ज़रूरी नहीं है…..
शिक्षा व्यवस्था ऐसे ही चले्गी कोई सुधार होने वाला नहीं….चेतन भगत की पुस्तक अभी पढी़ नहीं ..मौका मिला तो जरूर पढ़ूँगी…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||बधाई महोदय ||dcgpthravikar.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||बधाई महोदय ||dcgpthravikar.blogspot.com
अर्विन्द जी….या शिक्षा सा विमुक्तये! या ..सा विध्या या विमुक्तये…कौन सा ठीक है…शायद दूसरा ??—खैर ..यह कहना उचित नहीं कि लिखना ही था तो इतना पैसा क्यों बर्बाद किया…..ग्यान प्राप्ति के पश्चात ही तो उचित साहित्य लिखा जा सकता है…यूं तो कविता कोई भी बना-गा लेता है…परन्तु पूर्ण ग्यान प्राप्त व्यक्ति ही सामाजिक सरोकार युक्त सत-साहित्य का रचयिता हो सकता है…
आपने तो पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा जागृत कर दी। अब पुस्तक पढ़ने के बाद ही आपके लेख पर टिप्पड़ी लिखने की धृष्टता करूँगा।
maine chetan bhagat ki teeno books padhe hai, sabhi achi lagi, revolution 2020 abhi tak shuru nhi kiye. aapka review pad kar bht mann kar rha hap pdhne ka. kal he le lungi book!!
पढ़ लिया हो तो प्लीज़ आमीर खां को पास ऑन कर दीजिए यह पुस्तक 🙂
शिक्षा वह उपकरण है, जिसके माध्यम से हम अपना वांछित प्राप्त कर सकें.
what is love? It is what your parents give when you get selected in I I T . Best line of book .
शिक्षा जीवन के लिये है,शिक्षा प्राप्ति का उद्देश्य एक अच्छा इंसान बन कर देश-समाज के काम आना है.मानव जीवन को सार्थक करना है.रोजगार के लिए आवश्यक अर्हता है डिग्री.डिग्री शिक्षा नहीं है.डिग्री तो मुन्ना भाई को भी हासिल हो सकती है.किसी में गायिकी का जुनून है और वह किसी गुरु से शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो बिना डिग्री के भी एक सफल गायक बन सकता है.ज्ञान मस्तिष्क का विकास करता है,दुनिया के भले-बुरे को परखने की समझ देता है.विशिष्ट उद्देश्य के लिए विशिष्ट ज्ञान जरूरी है.किंतु जीवन हेतु नैतिक शिक्षा अनिवार्य है.नैतिक शिक्षा जरूरी नहीं कि किताबों में ही मिलती है, सारी दुनिया ही एक किताब है.चिंता का विषय शिक्षा नहीं बल्कि शिक्षा-प्रणाली है.
आजकल हम भी यही पढ़ रहे हैं अभी तक थोड़ा ही पढ़ा है परंतु चेतन भगत जी के लेखन में जो खिंचाव है वही आपके लेखन में भी है प्रवीण जी जब तक आपकी पूरी पोस्ट पढ़ न लें ध्यान कहीं बंटता नहीं…
चेतन मन से सभी के अवचेतन मन की व्यथा…
निश्चित रूप से चेतन भगत का लेखन समाज की विसंगतियों को हमारे सामने ला रहा है …बात चाहे शिक्षा व्यवस्था की हो या उनके जीवन की …..!
चेतन भगत के बारे पढ़ कर अच्छा लगा अभी तक मात्र नाम ही सुना था… अंग्रेजी के लेखक जो हैं.:) बाकि एक न एक दिन इस देश की शिक्षा व्यवस्था अपने आप अपना रास्ता बना लेगी.
चेतन भगत के लेखन से परिचय कराया …आभार ..शिक्षा और शिक्षा प्रणाली दोनों अलग अलग बात है .. आज की शिक्षा प्रणाली केवल जीविकोपार्जन का साधन मात्र बन कर रह गयी है ..
पुस्तक पढने की बेचैनी बढ़ गयी है अब…
बहुत अच्छा परिचय दिया.. आज हम जो शिक्षा प्राप्त करते हैं उसका जीविका अर्जन से कितना सम्बन्ध है इस पर विचार आवश्यक है. अगर एक डॉक्टर शिक्षा समाप्त करने के बाद प्रशासनिक सेवा से जुड जाता है तो उसके द्वारा प्राप्त शिक्षा का क्या महत्व रहा. अपने रूचि के अनुरूप शिक्षा प्राप्त की जाये तो सफलता की अधिक गुंजायश रहती है. चेतन भगत की अन्य पुष्तकों की तरह यह भी अवश्य रोचक होगी.बहुत सुन्दर आलेख…
I haven't read the novel yet, but with your write up has aroused an interest. I too feel that those who follow their heart are the happiest people on this planet.
इस सुन्दर समीक्षा के लिए आपका आभार ब्लॉग पर दस्तक के लिए शुक्रिया ज़नाब .