मैक या विण्डो – वैवाहिक परिप्रेक्ष्य

by प्रवीण पाण्डेय

कहते हैं यदि व्यक्ति तुलना न करे तो समाज संतुष्ट हो जायेगा और चारों ओर प्रसन्नता बरसेगी। पड़ोसी के पास कुछ होने का सुख आपके लिये कुछ खोने सा हो जाता है। औरों का सौन्दर्य, धन, ऐश्वर्य आदि तुलना के सूत्रों से आपको भी प्रभावित करने लगते हैं। आप बचने का कितना प्रयास कर लें पर यह प्रवृत्ति आपकी प्रकृति का आवश्यक अंग है, बहुत सा ज्ञान हमारी तुलना कर लेने की क्षमता के कारण ही स्पष्ट होता है।

हमारे एप्पल पर विण्डो की छाया
हमारे लिये मैकबुक एयर पर कार्य सीखना, पहली नज़र के प्यार के बाद आये वैवाहिक जीवन को निभाने जैसा था। प्रेम-विवाह को विजयोत्सव मान चुके युगल अपने वैवाहिक जीवन व मेरी स्थिति में बड़ी भारी समानता देख पा रहे होंगे। सम्बन्धों को निभाने और कम्प्यूटर से कुछ सार्थक निकाल पाने में लगी ऊर्जा के सामने प्रथम अह्लाद बहुधा वाष्पित हो जाता है। कितनी बार विण्डो की तरह कीबोर्ड दबा कर मैक से अपनी मंशा समझ पाने की आस लगाये रहे, विवाह में भी बहुधा ऐसा ही होता है। मैक सीखने की पूरी प्रक्रिया में हमें विण्डो ठीक वैसे ही याद आया जैसे किसी घोर विवाहित को विवाह के पहले के दिनों की स्वच्छन्दता याद आती है।
देखिये, तुलना मैक व विण्डो की करना चाह रहा था, वैवाहिक जीवन सरसराता हुआ बीच में घुस आया। तुलना में वही पक्ष उभरकर आते हैं जो बहुत अधिक लोगों को बहुत अधिक मात्रा में प्रभावित करते हैं। किसी बसी बसायी शान्तिमय स्थिरता को छोड़कर नये प्रयोग करने बैठ जाना, स्वच्छन्द जीवन छोड़ विवाह कर लेने जैसा ही लगता है।
जैसे वैवाहिक जीवन में कई बार लगता है कि काश पुराना, जाना पहचाना एकाकी जीवन वापस मिल पाता, मैक सीखते समय वैसा ही अनुभव विण्डो में लौट जाने के बारे में हो रहा था। अनिश्चित उज्जवल भविष्य की तुलना में परिचित भूतकाल अच्छा लगता है। निर्णय लिये जा चुके थे, उन्हे निभाना शेष था।
बीच का एक रास्ता दृष्टि में था, मैकबुक एयर में ही विण्डो चलाना। बहुत लोग ऐसा करते हैं, प्रचलन में तीन विधियाँ हैं, तीनों के अपने अलग सिद्धान्त हैं, अलग लाभ हैं, अलग सीमायें हैं। कृपया इनको वैवाहिक जीवन से जोड़कर मत देखियेगा। फिर भी आप नहीं मानते हैं और आपको बुद्धत्व प्राप्त हो जाता है तो उसका श्रेय मुझे मत दीजियेगा, मैं आने वाली पीढ़ियों के ताने सह न पाऊँगा।
एप्पल में विण्डो
पहला है, बूटकैम्प के माध्यम से मेमोरी विभक्त कर देना, एक में मैक चलेगा एक में विण्डो, पर एक समय में एक। एक कम्प्यूटर में दो ओएस, उनके अपने प्रोग्राम, एक उपयोग में तो एक निरर्थ। ठीक वैसे ही जैसे कुछ घरों में दो पृथक जीवन चलते हैं, दोनों अपने में स्वतन्त्र। जब जिसकी चल जाये, कभी किसी का पलड़ा भारी, कभी किसी का।
दूसरा है, वीएमवेयर(वर्चुअल मशीन) के माध्यम से, मैक में ही एक प्रोग्राम कई ओएस के वातावरण बना देता है, आप विण्डो सहित चाहें जितने ओएस चलायें उसपर। ठीक वैसे ही जैसे कोई रहे आपके घर में पर करे अपने मन की। ऐसे घरों में अपनी जीवनशैली से सर्वथा भिन्न जीवनशैलियों को जीने का स्वतन्त्रता रहती है।
तीसरा है, पैरेलल के माध्यम से विण्डो को मैक के स्वरूप में ढाल लिया जाता है और विण्डो के लिये एक समानान्तर डेक्सटॉप निर्मित हो जाता है। ठीक वैसे ही जैसे अपने पुराने स्वच्छन्द जीवन को नयी वैवाहिक परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेना।
हम हैं बाती, तुम पटाखा
दो विचारधाराओं को एक दूसरे में ठूसने के प्रयास में जो होता है, भला कम्प्यूटर उससे कैसे अछूता रह सकता है। मैक में विण्डो चलाने की दो हानियाँ हैं, पहला लगभग २५जीबी हार्ड डिस्क का बेकार हो जाना और दूसरा २५% कम बैटरी का चलना। कारण स्पष्ट है, कम्प्यूटर में भी और वैवाहिक जीवन में भी, सहजीवन में विकल्पीय विचारधारायें संसाधन भी व्यर्थ करती हैं और ऊर्जा भी।
आप बताईये मैं क्या करूँ, पहली नज़र के प्यार के सारे नखरे सह लूँ और मैक सीखकर उसकी पूर्ण क्षमता से कार्य करूँ या फिर पुराने और जाने पहचाने विण्डो को मैक में ठूँस कर मैक की क्षमता २५% कम कर दूँ?
देखिये लेख भी खिंच गया, वैवाहिक जीवन की तरह।

चित्र साभार – http://www.connectionsa.com/