शब्द जो थपेड़े से थे

by प्रवीण पाण्डेय

शब्दोंका बल नापा नहीं जा सकता है, पर जबउनका प्रभाव दिखता है तो अनुमान हो जाता है कि शब्द तीर से चुभते हैं, हृदय में लगते हैं, भावों को प्रेरित करते हैं, अस्तित्व उद्वेलित करते हैं। कुछ शब्दों में अथाह शक्ति थी, उन्होने इतिहास की दिशा बदल दी। पिता का वचन औरराम चौदह वर्ष के वनवास स्वीकार कर लेते हैं, पत्नी की झिड़की और तुलसीदास राम का चरित्र गढ़ने में जीवन बिता देते हैं, सौतेली माँ की वक्र टिप्पणी और ध्रुव विश्व मेंअपना स्थायी स्थान ढूढ़ने निकल जाते हैं। शब्दों का मान रखने के लिये के लियेवीरों ने राजपाट तो दूर, अपना रक्तभी बहा दिया है। शरणागत की रक्षा के लिये अपना सब कुछ स्वाहा करने के उदाहरणों सेहमारा इतिहास भरा पड़ा है।
वैसे तोकितना कुछ हम बोलते रहते हैं, सुनतेरहते हैं, बातें आयी गयी हो जातीहैं। शब्दों की उसी भीड़ में कब कौन सा वाक्य आपको झंकृत कर देन जानेकौन सा वाक्य कब आप पर प्रभाव डाल दे, चुभ जाये या जीवन की दिशा बदल दे, आपको भान नहीं रहता है। वह कौन सी मनःस्थिति होती है जिस पर शब्दप्रभावकारी हो जाते हैं? भारतीयजनमानस वैसे तो सहने के लिये विख्यात है, हम न जाने कितनी बातें पचा जाते हैं पर कब शब्दों के प्रवाह हमें बहाले जाये, इस पर बड़ी अनिश्चितता है।
जिनघरों में नित्य टोका टाकी होती है वहाँ के बच्चे इस प्रकार के शब्दप्रहारों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करलेते हैं, धीरे धीरे संवेदनशीलताकुंठित होने लगती है, किसी का कुछकहना बहुत अधिक प्रेरित या उद्वेलित नहीं करता है उन्हें। समस्या तब आती है जबआपको पहली बार कुछ सुनने को मिलता है, आपकी संवेदनशीलता पर पहली चोट पड़ती है। याद कीजिये, आप सबके जीवन में वह क्षण आया होगा जब शब्दोंने अपनी वाकऊर्जा से कई गुना कंपनआपके शरीर में उत्पन्न किया होगा, आपहिल गये होंगे, आप बहुत कुछ सोचनेलगे होंगे। ऐसे अवसर प्रकृति सबको देती है, भले ही कोई विद्यालय गया हो या न गयाहो, जीवन की पाठशाला में कोई निरक्षर नहीं है, ऐसी परिस्थितियों और घटनाओं केमाध्यम से सबकी समुचित शिक्षा और परीक्षा चलती रहती है। संवेदनशीलता यही है कि हमसदा ही सीखने और उसे व्यक्त करने को तत्पर रहें।
मन उलीचते शब्द थपेड़े

संवेदनशीलतायदि कुछ नयापन लाती है तो दुःख भी लाती है। जिन पर भावों का आश्रय टिका होता है, जिनसे अभिलाषाओं के सूत्र बँधे होते हैं, जिनसे आपको उत्तरों की प्रतीक्षा रहती है, उनसे यदि कुछ कठोर सा लगने वाला शब्द आपकोसुनायी देता है तो आपको संभावनाओं के सारे कपाट बंद से दिखते हैं। कई अतिभावुक जनइसे सहन नहीं कर पाते हैं और बहुधा अप्रिय कर बैठते हैं। जो शब्दों का मर्म समझतेहैं उनके लिये एक कपाट का बन्द होना उन प्रयत्नों का प्रारम्भ है जिसके द्वाराजीवन के उजले पक्ष खुलते जाते हैं।

भाग्यशालीहैं हम सब भाई बहन कि घर में सदा ही निर्णय लेने का अधिकार मिला है, स्वतन्त्र विचारशैली व जीवनशैली को सम्मान मिलाहै, मातापिता का स्नेहकवच सदा हीपल्लवित करता रहा है। यही कारण था कि लड़कपन तक एक हल्कापन और स्वच्छन्दताजीवनशैली में रची बसी रही। हाईस्कूल में सामान्य से अंक देख बस पिता ने यही कहा कियदि इतनी सुविधा उन्हें मिली होती तो उनका प्रदेश में कोई स्थान आया होता। ये शब्दपूरे अस्तित्व को झंकृत कर गये, आनेवाले वर्षों की दिशा निर्धारित कर गये। इण्टरमीडियेट में बोर्ड में स्थान आ गया, आईआईटी में पढ़ने का अवसर मिल गया, सिविल सेवा में चयन हो गया, जीवन में स्थायित्व भी आ गया, पर 25 वर्ष बाद भी वे शब्द स्मृति पटल पर स्पष्ट अंकित हैं।
न उसकेपहले पिता ने कभी कुछ कहा था, नउसके बाद पिता ने अभी तक कुछ कहा, परवे शब्द तो निश्चय ही थपेड़े से थे, अपने बल से आपका प्रवाह बदलने में सक्षम।


चित्र साभार – http://www.sportsillustrated.co.za