हिन्दी उत्थान और सहजता

by प्रवीण पाण्डेय

घर में सबचैनल के कार्यक्रम अधिक चलते हैं, हल्के फुल्के रहते हैं, परिवारके साथ बैठ कर देखे जा सकते हैं, बच्चोंको भी सुहाते हैं, भारतीय परिवेश कीसामान्य जीवनशैली पर आधारित होते हैं, स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हैं और कृत्रिमता से कोसों दूर होते हैं।मनोरंजन का अर्थ ही है कि आपके मन के कोमल भावों को गुदगुदाया जाये, कभी किसी परिस्थिति द्वारा, कभी किसी चरित्र के हाव भाव द्वारा, कभी किसी उहापोह से, कभी हास्य से, कभी बलवतीआशाओं से, कभी क्षणिक निराशाओं से।
हो सकताहै कि कभी हास्य का कोई रूप आपको थोड़ा हीन लगे पर संदर्भों के प्रवाह में वहभी मनोरंजन बनकर बह जाता हो, बिनाकोई विशेष क्षोभ उत्पन्न किये हुये। ऐसा ही कुछ मुझे भी खटकता है, सामान्य हास्य नहीं लगता है। कुछ धारावाहिकोंमें एक ऐसा चरित्र दिखाया जाता है जो बड़ी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी बोलता है, छोटी बातों को भारी भरकम शब्दों से व्यक्त करताहै, औरों को वह समझ में नहीं आता है, तब कोई समझदार सा लगने वाला चरित्र उसे सरलहिन्दी या अंग्रेजी में बता देता है, अन्य हँस देते हैं। आपके सामने वह हास्य और विनोद समझ कर परोस दिया जाताहै।
धीरेधीरे यह धारणा बनायी जा रही है कि हिन्दी एक ऐसी भाषा है जो संवाद और संप्रेषणयोग्य नहीं है, जो वैज्ञानिक नहींहै, जो आधुनिक नहीं हैं। किसीतार्किक आधार की अनुपस्थिति में भी यह हल्का सा लगने वाला परिहास ही उस धारणा कोस्थायी रूप देने लगता है। 

सरल भव, सहज भव
अति उत्साही हिन्दीबुद्धिजीवियों को अपने संश्लिष्ट ज्ञान से हिन्दी को पीड़ा पहुँचाते हुयेदेखता हूँ, सरल से शब्दों कोक्लिष्टता के आवरण से ढाँकते हुये देखता हूँ, शब्दों के अन्दर ही क्रियात्मकता और इतिहास ठूँस देने का प्रयास करतेहुये देखता हूँ। उपर्युक्त कारणों से जब हिन्दी का मजाक उड़ाया जाता है, तो क्रोध भी आता है और दुख भी होता है। क्रिकेटऔर रेलगाड़ी जैसे सरल शब्दों पर किये गये अनुप्रयोग इस मूढ़ता के जीवन्त उदाहरणहैं, समझ में नहीं आता है कि वेभाषा का भला कर रहे हैं या उपहास कर रहे हैं। आप ही बताईये कि माइक्रोसॉफ्टको हिन्दी में अतिनरमक्यों लिखा जाये?
अगलीबार इस तरह की मूढ़ता सुने तो विरोध अवश्य करे और प्रयास कर उन्हें सही शब्द भीबतायें। जो अवधारणायें नयी हैं, उनसे सम्बद्ध शब्द अन्य भाषाओं से लेते रहनाचाहिये, उन अवधारणाओं के स्थानीयविकास के लिये। अंग्रेजी भी तो न जाने कितनी भाषाओं के शब्दों से भरी पड़ी है।बिना हलचल भाषाओं को भी स्वास्थ्य प्राप्त ही नहीं हो सकता, सजा कर रख दीजिये किसी जीवित प्राणी कोकुछ हीदिनों में कृशकाय हो जायेगा। हम अपनी माँदों से बाहर निकलेंप्रयोगोंके खेल खेलेंनये शब्दों के खेल खेलेंसरलता आयेगी भाषा में, जनप्रियता आयेगी भाषा में, संभवतः वही भाषा का स्वास्थ्य भी होगा।
यह भीउचित नहीं होगा कि जिसका जैसा मन हो वह हिन्दी में अनुप्रयोग करे और हिन्दी में जोशब्द प्रचलित है उन्हें भी अन्य भाषाओं से बदल दे। अपनी तिजोरी देखने के पहले औरोंसे भीख माँगने की आदत, जो कई अन्यक्षेत्रों में है, हिन्दी में नलायी जाये। जिस देश में 12% जन भीअंग्रेजी नहीं समझते हैं, उन्हेंनये अंग्रेजी शब्द याद कराने से अधिक सरल होगा उपस्थित हिन्दी शब्दों को अधिकउपयोग में लाना। जब अन्य भारतीय भाषाओं में उन शब्दों का प्रयोग हो रहा हो तोअंग्रेजी शब्द आयातित करना बौद्धिक भ्रष्टाचार सा लगता है। कई तथाकथित प्रबुद्धहिन्दी समाचार पत्र इस प्रवृत्ति के पोषक बने हुये हैं।
हो सकताहै कि हिन्दी उत्थान पर यह पोस्ट आपको उपदेशात्मक लगे, हिन्दी जैसे व्यक्तिगतविषयों पर टीका टिप्पणी करने जैसी लगे, क्रोध भी आये, पर इस पर विचार अवश्य हो किक्या हिन्दी भाषा इस प्रकार के हास्य का विषय हो सकती है?

चित्र साभार – lalitdotcom.blogspot.com