प्यार छिपाये फिरता हूँ
by प्रवीण पाण्डेय
छिपीकिसी के मन में कितनी गहराई, मैंक्या जानूँ?
आतुरकितनी बहने को, हृद-पुरवाई, मैं क्या जानूँ?
कैसेजानूँ, लहर प्रेम की वेग नहीं खोने वाली,
कैसेजानूँ, प्रात जगी जो आस नहीं सोने वाली।
धूप, छाँव में बह जाता दिन,आ जाती है रात बड़ी,
बढ़तारहता, खुशी न जाने किन मोड़ों परमिले खड़ी।
एकअनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,
सकल विश्व पर बरसा दूं , वह प्यार छिपाए रहता हूँ …छिपा सकता नहीं आकाश भी, बरसात के रूप में बरस जाता है खुले प्रेम- पत्र की तरह !
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।बरखा आई और बादल छा गए हैं …कोमल ..बहुत सुंदर हृद-उदगार …मौसम का असर मन पर हो ही जाता है ….!!
आप वो प्यार छुपाते ही नहीं, बल्कि बरसाते भी हैं. बहुत सुन्दर कविता 🙂 नोट: ये टिपण्णी दिल से लिखी गयी है, इसमें रैपिडैक्स कोर्स का इस्तेमाल बिलकुल नहीं किया गया है.
आशा है, बरसात होगी, भरपूर होगी.
kya baat hai bhaiya
बरसात का मौसम निराला होता है
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ, सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।सुंदर ….बहुत सुंदर
सुंदर कविता।
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ,वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।बादल और बरसात.सुनते ही मन में आनंद की लहरेंउठने लगती है.आप बादल बने और प्यार की बरसात करें तो मौसम बहुत सुहावना हो जाता है.काश! ऐसी बरसात का मौसम सदा बना ही रहे.अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
जब घन घनघोर बरसने को हैं तो आप भी बरसाइये.:)
बहुत सुन्दर कविता, उतना ही मनोरम चित्र
आपके स्नेहिल दिल को हार्दिक शुभकामनायें !
मन हरषाए बदरवा . मनमोहक प्रस्तुति .
प्यार छुपता नहीं है उसके बाहर आने का केवल तरीक़ा बदल जाता है व्यक्ति के अनुसार ! अगर व्यक्तिगत प्यार है तो छुप के भी बहुत कुछ अन्य माध्यम (कविता आदि ) से तो छलक ही पड़ता है,यदि सार्वभौमिक प्यार है तो कृतित्व और कर्म से 'सकल विश्व' को लाभान्वित किया जा सकता है !प्यार जैसा भी हो,हमेशा अच्छा होता है !
आप सर्वश्व लुटा दें मगर उधर से तो अनजाना ही रहेगा सब कुछ !शायद यही उदात्त और अशरीरी प्यार है ….शायद ही , मुझे भी पक्का पता नहीं है !
जो अपना या अपने लिए हो वही प्यार प्यारा बाकी तो आवारा –यह सोच भी प्रभावी हुई है |सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति ||
vaah Praveen ji bahut bahut achchi kavita hai kuch panktiyon ne to man moh liya.
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,बढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।बहुत ही अच्छी शिल्प में गढ़ी हुई सुंदर छन्दबद्ध रचना ने प्रभावित किया। गूढ अर्थों का समावेश रचना को एक ऊंचा आयाम प्रदान करता है।
oh!! ye pyaar!! adbhut hai!!!
अजी प्यार छुपाइये नहीं.. बांटते फिरीये.. ज़िन्दगी का तो यही दस्तूर है.. और अगर नहीं है तो बना दीजिये 🙂
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।These lines are magical 🙂 Beauteous !!!
सकल विश्व पर बरसाने वाला प्यार भला कहाँ छुप सकता है ..सुन्दर प्रस्तुति
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ…Your love is magnificent !Loving the creation ..
बहुत -ही अच्छी और प्यारी रचना है पढ़ने का अवसर देने के लिए धन्यवाद
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ, सकलविश्व पर बरसा दूँ,वह प्यार छिपाये फिरता हूँ। सार्वभौमिक भावना…बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 14-07- 2011 को यहाँ भी है नयी पुरानी हल चल में आज- दर्द जब कागज़ पर उतर आएगा –
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।आपकी रचना तेताला पर भी है ज़रा इधर भी नज़र घुमाइयेhttp://tetalaa.blogspot.com/
प्रवीण भाई, प्यार छिपाने की चीज नहीं, जताने की है। और हां, यह जताने से बढता भी है।वैसे आपके जज्बों में दिल को छू लेने की कशिश है।——साइंस फिक्शन की तिलिस्मी दुनियालोग चमत्कारों पर विश्वास क्यों करते हैं ?
बंधू ,आप ने तो प्यार बरसा दिया …आप को भी प्यार !
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी, बढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ हैं.**नेह के मह बरस जायेंगे तो भी रीते नहीं होंगे..प्रेम -लहर यूँ भी आसानी से वेग खोती नहीं है.
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।…प्यार भी कभी छुपा है क्या ..खूबसूरत अभिव्यक्ति..बधाई. ___________________शब्द-शिखर : 250 पोस्ट, 200 फालोवर्स
किसी चंचल नदी की कल-कल धारा समान एक वेग से बहती, मन में सुख का संचार करती सुंदर प्रस्तुति| 'हृद पुरवाई' वाला शब्द प्रयोग बहुत जोरदार रहा|
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।इस अभिनव बिम्ब के साथ बुनी गयीं इन पंक्तियों का जवाब नहीं !आभार!
bahut pyar aur dular bhari kavita!
बरसात का सुहाना मौसम है ये प्यार भी कहाँ छुपेगा बरस ही जायेगा.
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ !वाह … बहुत ही खूबसूरत से अहसास इन पंक्तियों में ।
वाह, क्या कहने।बहुत सुंदर
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।क्या बात है, बहुत सुंदर, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अंतिम दो पंक्तियों में पूरी कविता का सार छिपा है..प्रेममयी भाव
शानदार भावनात्मक अभिव्यक्ति…
आज बरस ही जाइये ..बरसात भी आ गयी है..और बाकि पंक्तिया बड़ी सुन्दर है बंधू
जों छिपा है वही प्रकट है.. जों अजाना है वही तो ज्ञान है!!
premras se sarobar rachna…………
कैसे मन में उठे ये सुंदर विचार, मैं क्या जानूं। बढिया कविता के लिए बधाई पाण्डेय जी॥
choti si pyari kavita..refreshing!!
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।…..बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना…इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार…..
बहुत बढिया।सावन में फागुन का फोटो लगाया है।
प्यार छिपाये क्यों फिरते हो,बरसो बादल बरसोजल-संरक्षण करना हमनें सीख लिया है.धूप-छाँव पर पुल बाँधा है,दिन अब ना डूबेगाकैसे पार उतरना ,खुशी ने सीख लिया है.
सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।beautiful poem
भाई! बादलों की सार्थकता तो बरसने में है.प्यार बांटते रहिये, यह खजाना देने से और बढ़ता है.
छिपी किसी के मन में कितनी गहराई, मैं क्या जानूँ?आतुर कितनी बहने को, हृद-पुरवाई, मैं क्या जानूँएक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।सुन्दर भावाभिव्यक्ति
कैसे जानूँ, लहर प्रेम की वेग नहीं खोने वाली,कैसे जानूँ, प्रात जगी जो आस नहीं सोने वाली ….सकारात्मक सोच…
वाह!
ये जो अनिश्चित बादल सा आकार है यही तो प्यार है ….. बहुत ख़ूबसूरत भाव 🙂
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,बढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी ..यही तो जीवन है … बढते रहना …
बारिश का मौसम और आपकी यह रचना..बहुत खूबसूरत<a href="http://hindiuniverse.blogspot.com/2011/07/hindi-satire-and-humor-from-google.html>हिन्दी साहित्य के चुनिन्दा व्यंग्य लेखकों की रचनाएं गूगल बुक्स पर पढ़ें</a>
बेहतरीन.सादर
बहुत खूब कहा है आपने ।
प्यार छिपता नहीं छिपाने से..
बहुत खूबसूरत है भैया..
वाह…वाह…वाह…वन्दनीय सोच और प्रशंशनीय शिल्प…..और क्या कहूँ….जियो…
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,बढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।….बहुत सुन्दर और कोमल अहसास..भावों और शब्दों का सुन्दर संयोजन…बहुत सुन्दर प्रस्तुति
waah aaj to kalam kuchh hat ke gunguna rahi hai.sunder abhivyakti.
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।baras jaiye…apne desh me to bas bam aur gole hi baraste hain…aaapke pyar bhari fuhar ki barish shayad kuch raahat de sabko.
टिपण्णी कला काम नहीं आ रही इस पोस्ट पर 🙂
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार|
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।बहुत ही खूबसूरत रचना….
बरस ही जाइए।
सकल ब्लॉग जगत पर तो बरस ही रहा है आपका स्नेह । बहुत सुंदर कविता ।
आप प्यार बरसायें , बदले में पुनः सभी का स्नेह ,वाष्प बन आपके प्यार के बादल को और घना कर देगा ।बहुत सुन्दर अभिलाषा और अभिव्यक्ति..
बहुत सुंदर कविता है | 🙂 🙂
छिपी किसी के मन में कितनी गहराई, मैं क्या जानूँ?आतुर कितनी बहने को, हृद-पुरवाई, मैं क्या जानूँमनमोहक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार…..
धूप, छाँव में बह जाता दिन, आ जाती है रात बड़ी,यही तो ज़िंदगी है.. बढ़ता रहता, खुशी न जाने किन मोड़ों पर मिले खड़ी।और इसी के भरोसे तो जिन्दगी जी जाती है… बहुत सुन्दर रचना
बहुत बढिया, अच्छा विषय, सटीक बात
बहुत बढिया, अच्छा विषय, सटीक बात
अहसासों को शब्दों में गूँथती सुन्दर रचना।आपके शब्दों को पढ़कर अहसास होता है कि दिल के भावों को व्यक्त करने के लिये कविता सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। हाँ ईश्वर यह क्षमता केवल कुछ ही लोगों को देता है।
कोई नहीं जानता कि 'स्व' को 'सर्व' में विसर्जित करने पर 'सर्वस्व' मिल जाता है। पहले मालूम होता तो सब यही कर लेते।
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ,ह्रदय की पीड़ा को मन की भावना को शब्द प्रदान करते हो,निमित्त बन वैचारिक क्रान्ति को बल प्रदान करते हो..
बहुत सुन्दर.
एक अनिश्चित बादल सा आकार बनाये फिरता हूँ,सकल विश्व पर बरसा दूँ, वह प्यार छिपाये फिरता हूँ।ati sundar man ko behad bha gayi .kai baar gunguna dali .maja aa gaya padhkar .
chipayee kyu hai , barsa dijiye !