सहना, रहना, सहते रहना

by प्रवीण पाण्डेय

वर्षोंहम तो यही समझते रहे कि पीड़ा पहुँचाने की क्षमता ही शक्ति का प्रतीकचिन्ह है, पीड़ा का भय ही शक्ति का आदर करता है। जीवन भर यही समझ लिये पड़े रहते यदिलगभग 15 वर्ष पहले एक सेमिनार मेंजाने का सौभाग्य न मिला होता। संदर्भ भारत और पाकिस्तान की सामरिक क्षमताओं पर थाऔर एक प्रखर वक्ता उस पर बड़े तार्किक ढंग से प्रकाश डाल रहे थे। उनके अनुसार, शक्ति को नापने में पीड़ा पहुँचाने की क्षमतासे भी अधिक महत्वपूर्ण है की पीड़ा सहने की क्षमता। उस समय लगा कि किसी ने विचारोंके कपाट सहसा खोल दिये हैं, हम भीमुँह बाये सुनते रहे। धीरे धीरे जब शक्ति के इस सिद्धान्त की व्याख्या कई उदाहरणोंके साथ की गयी तो सामरिक संदर्भों में वह सिद्धान्त मूर्त रूप लेने लगा।
जो देशपर लागू होता है, वह देह पर भी लागूहोता है। एक धुँधला सा चित्र बना रहा, व्यवहारिक अनुप्रयोग के अभाव में अपूर्ण सा ही बना रहा यह सिद्धान्त। कुछसिद्धान्त उद्घाटित होने के लिये अनुभव का आहार चाहते हैं,स्वयं पर बीतने से अनुभव का उजाला शब्दों की स्पष्टता बढ़ादेता है। यौवन तो केवल कहने और करने का समय था, संभवतः इसीलिये यह सिद्धान्त अपूर्ण सा बना रहा। सहने के अनुप्रयोग जीवनमें आने शेष थे, संभवतः इसीलिये यहसिद्धान्त अपूर्ण सा बना रहा।
भारतीयमनीषियों ने भले ही अविवाहित रह कर यह तथ्य न समझा हो पर हमारे लिये विवाहसिद्धान्तसमूहों का प्राकृतिकनिष्कर्ष है। हर वर्ष बीतने के साथ ज्ञानचक्षुओं के न जाने कितने स्तर खुलते जाते हैं, जीवन यथारूप समझ में आने लगता है, घर में अपनी स्थिति स्पष्ट होने के साथ ही विश्व में भी अपनी नगण्यता काभान होने लगता है, युवावस्था कीवेगवान पहाड़ी नदी सहसा समतल पर आकर फैल जाती है, श्रीमतीजी और बच्चों के किनारों के बीच सिमटी।
जब कुछअनुकूल नहीं होता है तो बड़ी कसमसाहट होती है, व्यग्रता को उसी क्षण उतार देने का मन करता है, दिन भर उतारने और चढ़ाने में मन और तन लगा रहता है, जीवन गतिमान बना रहता है। घर के बाहर तो यहव्यवहार चल सकता है पर घर के भीतर भी आप यही करने बैठ गये तो आपको शान्ति कहाँमिलेगी?
शान्तिप्राप्ति की इसी विवशता ने सहने का महामन्त्रसिखा दिया। स्वभावानुसार थोड़े दिन तो व्यवहार में रुक्षता बनी रही पर धीरे धीरेसहने का गुण सीखने लगे। पहले तो तुरन्त उत्तर न देकर कुछ घंटों के लिये जीभ नेसहना सीखा, फिर उस बात को कुछ दिनोंमें ही भुलाकर मन ने सहना सीखा, फिरउन्हीं परिस्थितियों में संभावित अनुकूलता निकाल कर जीवन ने सहना सीखा।
व्यक्तित्व विस्तृत सहनशील

कल्पनाकीजिये कि आपकी सहनशीलता इतनी बढ़ जाये कि प्रतिकूलताओं के छोटे मोटे पत्थर आपकीमनसझील में तरंग तो उत्पन्न करेंपर उनमें न ही आयाम हो और न ही अनुनाद। तब आपकी मानसिकशक्ति का क्षरण करने के प्रयास थक हार कर वापस चले जायेंगे। जब सामने वालाआपको विचलित करने के प्रयास करते करते थक जायेगा, तब आपको बिना अपनी ऊर्जा व्यर्थ किये शक्ति का आभास होने लगेगा।

पतानहीं, जब देश में हर ओर आक्षेपों काउद्योग पनप रहा है, मेरा सहनशीलचिन्तन किस महत्व का हो, परआत्मशक्ति का एक सशक्त कारक बनकर उभरी है मेरी सहनशीलता। सहनशीलता में गाँधीजी केसत्य के प्रयोगों ने एक स्वतन्त्रता तो दिला दी है, हमारे प्रयोग न जाने क्या मुक्त कर बैठेंगे।
हम तो सहना, रहना और सहते रहना के मार्ग पर चलते चलते अपनी शक्ति बढ़ाने मेंलगे हैं, कम से कम घर में हमारा बॉर्नबीटा यही है। आप कौन सा शक्ति-पेय पीते है?


चित्र साभार – http://shepherdssheep.wordpress.com/