डरे डरे से मोरे सैंया
by प्रवीण पाण्डेय
आगत की आशंका |
जब मन में छिपा हुआ सत्य अप्रत्याशित रूप से सामने आ जाता है, तब न कुछ बोलते बनता है और न कहीं देखते बनता है। बस अपनी चोरी पर मुस्करा कर माहौल को हल्का कर देते हैं। आप अपने घर पर हैं, चारों ओर परमहंसीय परिवेश निर्मित किये बैठे हैं, संभवतः ब्लॉग पढ़ रहे हैं। आपकी श्रीमतीजी आती हैं और चेहरे पर स्मित सी मुस्कान लिये हुये कुछ कहना प्रारम्भ ही करती हैं कि आप आगत की आशंका में उतराने लगते हैं। आप कहें न कहें पर आपका चेहरा पहले ही आपके मन की बात कह जाता है। अब चेहरा कहाँ तक कृत्रिमता ओढ़े बैठा रहेगा, जो मन में होगा वह व्यक्त ही कर देगा। अब यह देखकर श्रीमतीजी आप पर यह सत्य उजागर कर दें तो आपको कैसा लगेगा?
“मैं कुछ भी बोलना प्रारम्भ करती हूँ तो आपके चेहरे पर प्रश्नवाचक भय पहले से आकर बिराज जाता है“।
सत्य है, झुठलाया नहीं जा सकता है, बहुधा आपके साथ ऐसा ही होता होगा। जानबूझ कर नहीं पर अवचेतन में ऐसा भाव क्यों बैठ गया है, कोई मनोवैज्ञानिक ही बता सकता है। कई बार ऐसा होता है कि बात बहुत छोटी सी निकलती है, साथ में आपके राहत की साँस भी। बड़ी बात भी समझाने से अन्ततः मान जाती हैं श्रीमतीजी। पर इस भय का निवारण अभी तक नहीं हो पाया है। ऐसा क्या हो जाता है कि आप कुछ भी सुनने के पहले ही भयभीत हो जाते हैं? ऐसा क्यों लगने लगता है कि श्रीमतीजी की सारी माँगें आपको समस्याग्रस्त करने वाली हैं? परिवार में आशंकाओं के बादल कब आपके मन में झमाझम बरसने लगते हैं, कोई नहीं जानता, मौसम विज्ञान के बड़े बड़े पुरोधा भी नहीं बता सकते हैं।
संवाद पर अनेकों शास्त्र लिखे ऋषियों ने पर पता नहीं क्यों पारिवारिक संवाद को इतना महत्व नहीं दिया गया? संभवतः परिवार में जो एकमार्गी संप्रेषण होता हो वह संवाद की श्रेणी में आता ही न हो। आदेश और संवाद में अन्तर ही इस प्रतीत होती सी भूल का कारण होगा। यह भी हो सकता है कि ज्ञान पाने के लिये अविवाहित रहने की बाधा इस विषय से अधिक न्याय न कर पायी हो। विवाह न करने से जितना ज्ञान जीवन भर प्राप्त होता है उतना तो कुछ ही वर्षों का वैवाहिक जीवन आपको भेंट कर देता है। ज्ञान चक्षु शीघ्र खोलने हों, कुण्डलनी जाग्रत करनी हो तो बिना कुछ सोचे समझे विवाह कर लीजिये और यदि विवाह कर चुके हों तो अपनी धर्मपत्नी की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना प्रारम्भ कर दीजिये।
अब इतना ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी हम श्रीमतीजी के वाक–अस्त्रों के सामने असंयत दिखायी पड़ते हैं। भय इसी बात का ही रहता है कि छोटी छोटी सी लगने वाली बातें न जाने कितनी मँहगी पड़ जायेंगी। बच्चों को भी लगने लगा है कि पिता पुरुरवा के स्तर से उतर कर हर वर्ष प्रभावहीन होते जा रहे हैं और माता उर्वशी के सारे अधिकार समेट अपनी कान्ति की आभा का विस्तार करने में व्यस्त हैं। कोई दिनकर पुनः आये और नयी उर्वशी का रूप गढ़े, पारिवारिक संदर्भों में।
एक बड़ा ही स्वस्थ हास्य धारावाहिक हम सब बैठकर देखते हैं, तारक मेहता का उल्टा चश्मा। लगता है उस धारावाहिक के दो पात्र हमारे घर में पहले से रह रहे हैं। मैं ‘दयनीय जेठालाल‘ और श्रीमतीजी ‘निर्भीक दया भाभी‘ बनती जा रही हैं।
हमारे तो विवाह का जो अध्याय 14 फरवरी से चला था, अब 8 मार्च पर आकर ही ठहर गया।
मेरी कहानी है, मैं स्वयं झेलूँगा पर यदि आप अपनी श्रीमतीजी को इस विषय पर कुछ गाने के लिये कहेंगे तो संभवतः आपको भी यही स्वर सुनने को मिलेगा।
मोरे सैंया मोहे बहुतै सुहात हैं,
जो परस देओ बस वही खात हैं,
न जाने काहे छोटी छोटी बात मा,
पहले से घबराय जात हैं।
डरे डरे से मोरे सैंया,
पहले तो सब सुन लेते, अब ध्यान कहाँ है तोरे सैंया।
(धुन पीपली लाइव, मँहगाई डायन)
(धुन पीपली लाइव, मँहगाई डायन)
चित्र साभार – http://www.pushprint.co.za/
निश्चित ही आपकी कहानी आप ही झेलेंगे मगर शुभकामनाएँ तो दे ही सकते हैं हम….एक तसल्ली रहेगी. 🙂
@डरे डरे से मोरे सैंया,पहले तो सब सुन लेते, अब ध्यान कहाँ है तोरे सैंया।ध्यान सारा ब्लॉग पर है।:)
dar-asal har vyakti apni bhadas nikalna chahta hai, hum aur aap to blog likhkar ye karl lete hain to shrimati ji hum par…..nikalti hain !
मज़ा आया इस हलके फुल्के आलेख को पढ़कर .ब्लॉग्गिंग करने वालों की सच्ची कथा .
यह सीरियल तो मुझे भी पसंद है सर, पते की बात की आज की पोस्ट में.. सबकी अपनी सी..
मोरे सैंया मोहे बहुतै सुहात हैं,जो परस देओ बस वही खात हैं,न जाने काहे छोटी छोटी बात मा,पहले से घबराय जात हैं….भाभी जी के विचारों में अकाट्य सत्यता है। .
हम तो यही समझ रहे थे की वहां 'सैंयां भये कोतवाल हैं' लेकिन अब पता चल गया कि यह घर-घर की कहानी है.
जब जब श्रीमती जी बहुत हर्षित हुई हैं,बहुत मंहगी पड़ी हैं ,उनका तो हर्ष हो जाता है ,यहां विषाद रह जाता है ।लेकिन सच तो यह है आनन्द भी इसी में है ।
प्रवीण जी, ये घर गृहस्थी के चक्कर में ज्ञान पाने का तो ऐसा है कि कभी कभी उन ऋषियों मुनियों पर दया आती है जो हिमालय चले गये ज्ञान की खोज में….यदि उन्हे सच्चा ज्ञान प्राप्त करना था तो विवाहित जीवन अपनाना चाहिए था….तब एक से बढ़कर एक ज्ञान के स्त्रोत दिखाई पड़ते। पत्नी बाजार से ताजा सब्जी लाने को कहती और जब ऋषि महोदय झोले में हरी सब्जी की बजाय थोड़ा सा भी मुरझाया पालक ले आते तो तुरंत ही उन्हें ज्ञान की बातें सुनने को मिलती….न जाने कैसे आप दिव्यदृष्टि पाने का दावा करते हो….सब्जी खरीदते वक्त तो एक पालक का बंडल तक ठीक से देख नहीं सकते और दावा करते हो त्रिकालदर्शी होने का…. हुँह 🙂 और जब शाम को पत्नी कहती कि आज चार दिन हो गये बिल नहीं भरने के कारण बिजली कटे हुए, राशन पर से मिला मिट्टी का तेल भी खत्म हो गया, अब ढिबरी में तेल नहीं है, पूरे घर में अंधेरा छा गया है ऐसे में आप अपने तेज से समूचे विश्व में अलौकिक प्रकाश का दावा किस मुंह से करते हैं जबकि आपके खुद के घर में अंधेरा है 🙂 इस तरह की ढेरों ज्ञानवर्धक बातें जानने का बेहतरीन स्त्रोत है विवाहित जीवन 🙂 बहुत सुंदर पोस्ट है, एकदम मन हिलोर।
पाण्डेय जी आज तो अपने दिल की बात कह दी आपकी हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी अच्छी पोस्ट मजा आगया
पाण्डेय जी आज तो अपने दिल की बात कह दी आपकी हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी अच्छी पोस्ट मजा आगया
ई फोटुवा जिनका साटें हैं, इनका ब्लॉग भी खुलवाईये…एक नया अनुभव रहेगा…हा हा!!
मूड और मौसम होलियाना हो रहा है, साथ में पिपलियाना फाग भी.
सब धाम बाइस पसेरी ? हम तो नहीं घबराते 🙂
पारिवारिक वातावरण का सही चित्रण किया है आपने…..लेकिन डर के आगे जीत वाली बात भी है क्योकि पति-पत्नी के बीच संवाद में कभी-कभी वेबलेंथ दुरुस्त नहीं भी रहने का अपना अलग ही आनंद है हाँ इतना जरूर कहना चाहूँगा की संवाद की कमियां आपसी विश्वास के आधार को प्रभावित करने की हद को ना पार करने पाये इसका जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए……आदेश और संवाद में अन्तर को यथासंभव कम करने की कोशिस जारी रखें……..
श्रीमतीजी आती हैं और चेहरे पर स्मित सी मुस्कान लिये हुये कुछ कहना प्रारम्भ ही करती हैं अभी भी स्मित, मुस्कान का चलन है यह अपने आप में एक उपलब्धि है। 🙂
अधिकांश भारतीय पति- पत्नियों की व्यथा को शब्द दे दिए …रोचक अंदाज़ में लिखी मनोरंजक पोस्ट !
कुण्डलनी जाग्रत करनी हो तो बिना कुछ सोचे समझे विवाह कर लीजिये और यदि विवाह कर चुके हों तो अपनी धर्मपत्नी की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना प्रारम्भ कर दीजिये।सोचा है आपके सुंदर विचार आज ज़रा उनके साथ भी बाँटें जाएँ….. 🙂 बहुत बढ़िया
ऐसे ही ठीक है तसल्ली रखो ….हमारी शुभकामनायें साथ हैं !
बच्चों को भी लगने लगा है कि पिता पुरुरवा के स्तर से उतर कर हर वर्ष प्रभावहीन होते जा रहे हैं और माता उर्वशी के सारे अधिकार समेट अपनी कान्ति की आभा का विस्तार करने में व्यस्त हैं। कोई दिनकर पुनः आये और नयी उर्वशी का रूप गढ़े, पारिवारिक संदर्भों में… bahut khoob .
"मैं कुछ भी बोलना प्रारम्भ करती हूँ तो आपके चेहरे पर प्रश्नवाचक भय पहले से आकर बिराज जाता है"….बोलने वाले को आत्ममंथन की आवश्यकता है.
मोरे सैंया मोहे बहुतै सुहात हैं,जो परस देओ बस वही खात हैं,न जाने काहे छोटी छोटी बात मा,पहले से घबराय जात हैं।यदि यह सत्य है तो फिर कोई चिन्ता नहीं ….पर इतनी सीधायत से कहाँ कोई सैंया खात हैं ? यह तो श्रीमती जी से ही पूछना पड़ेगा …रोचक लेखन
यह भी हो सकता है कि ज्ञान पाने के लिये अविवाहित रहने की बाधा इस विषय से अधिक न्याय न कर पायी हो। सही बात है\वैसे इस झेलने मे कितना चिन्तन हो जाता है । मुझे तो असली चिन्तन की राह ही घर गृ्हस्ती मे लगती है। जहाँ हम जीवन के विभिन्न पहलूओं चिन्तन कर सकते हैं। आपने हास्य पुट दे कर भी बहुत गम्भीर बात कह दी। झेलना बेकार नही ग्या। बधाई।
अपने मन की सच्ची-सच्ची लिखो तो सबके मन की हो जाती है। इसका कारण यही है हम सभी कमोबेस एक ही सोच-परिवेश में जीते हैं। इसे पढ़ना सुखद रहा। श्रीमती जी को भी पढ़वाया। अच्छा लगा।मैने एक कविता लिखी थी….श्रीमतीप्रश्न पत्र गढ़ती रहती हैवह मुझसे लड़ती रहती हैदफ्तर से जब घर आता हूँवह मुझको पढ़ती रहती है।सब्जी लाए ? भूल गये क्या!चीनी लाये ? भूल गये क्या!आंटा चक्की से लाना थाखाली आए! भूल गये क्या!मुख बोफोर्स बना कर मुझ परबम गोले जड़ती रहती है।
मोरे सैंया मोहे बहुतै सुहात हैं,जो परस देओ बस वही खात हैं,बस यही सिद्धांत काफी है ।
आदेश और संवाद दोनों का परागामी होना ही हितकर है तभी द्वय पक्ष निर्भय हो सकते हैं.
हा-हा-हामजा आ गया, आजकी पोस्ट पढकरऐसा ही हम भी झेलते हैं जी, बिल्कुल जेठालाल के जैसे भाव चेहरे पर लिये हुये :)फोन कॉल पर श्रीमति का नाम देखकर ही आशंकित मन के भाव मेरे चेहरे पर विराजमान हो जाते हैं :)प्रणाम
प्रवीण जी बस अब एक शोध कर ही डालिये इस पर्………आखिर इस मुस्कान का राज़ क्या है? वैसे इतना कठिन विषय नही है …………हा हा हा………इसी डर मे भी तो प्रेम की अनुभूति होती है।
बहुत अछा पोस्ट है आपका बहुत अछे शब्द इस्तमाल किये आपने … हवे अ गुड डे विसीट मायी ब्लॉगMusic BolLyrics Mantra
एगजेक्टली यही हमारे साथ(हम पत्नियों के साथ) भी होता है…जैसे ही "वो"सामने पड़ते हैं हिया काँप जाता है कि जाने अब क्या होने वाला है…मन आतंकित ,आँखें भयग्रस्त ,दिमाग आत्म रक्षा को प्रस्तुत…..सोचती थी,यह केवल महिलाओं के साथ है…आज जाना उधर भी यही हाल है…विषम समस्या है…इसका निवारण कैसे हो ????
Gazab.———क्या व्यर्थ जा रहें हैं तारीफ में लिखे कमेंट?
" विवाह न करने से जितना ज्ञान जीवन भर प्राप्त होता है उतना तो कुछ ही वर्षों का वैवाहिक जीवन आपको भेंट कर देता है। ज्ञान चक्षु शीघ्र खोलने हों, कुण्डलनी जाग्रत करनी हो तो बिना कुछ सोचे समझे विवाह कर लीजिये और यदि विवाह कर चुके हों तो अपनी धर्मपत्नी की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना प्रारम्भ कर दीजिये।"सर नयी- नवेलियो के लिए अच्छा सुझाव दिया है आप ने !वैसे मैंने बहुतो को कहते सुना है – " जब से शादी हुयी है सारे के सारे बुद्धि…मंद ! मजे की बात आप ने बताई है ! धन्यवाद ….
कहीं पढ़ा था बैस्ट कपल के बारे में – गूंगी पत्नी, बहरा पति। जो अपने वश में है वो कर लेते हैं, कान में दर्द का बहाना और दोनों कान में रुई:))
मैं तो दोनों को एक ही इकाई मानता हूँ इसलिए द्वैत का द्वैध नहीं समझा! शुभकामनाएं !
मेरी कहानी है, मैं स्वयं झेलूँगा सबकी अपनी – अपनी कहानी है …सब अपनी तरह से झेलेंगे ,
हमने आपका क्या बिगाडा था? हमारी पोल यूं सरे बाजार क्यों खोल दी?:)रामराम.
डरे-डरे की बजाय रूठे-रूठे के मोड में रहिए तो पत्नी जी मनाये-मनाए के मूड में आ जाएगी 🙂
रोचक अंदाज़ में लिखी मनोरंजक पोस्ट| धन्यवाद|
अरे, ये कैसा डारावना आदमी बनाया…
हाँ पाण्डेय जी, बहुत सुन्दर व चटपटी अभिव्यक्ति दी है आपने पति-पत्नी के समय के साथ निखरते व बदलते गहरे, अनूठे व अजूबे रिस्ते की । पर एक अनुभूति अवश्य यहाँ बाँटना चाहूँगा कि अव तो सैयाँ की चुप्पी के पीछे के मनोविचारों को ( व मनोविकारों को भी … हाहाहाहा) मैडम भाँप लेती हैं, और वे यहीं पंक्तियाँ गुनगुनाती हैं-हुजूर चुप रह करके भी कहाँ और क्या छुपाइयेगा ।मन में जो भी चल रहा है, बच्चू पकडे ही जाइयेगा ।
मोरे सैंया मोहे बहुतै सुहात हैं,जो परस देओ बस वही खात हैं,न जाने काहे छोटी छोटी बात मा,पहले से घबराय जात हैं।हा…हा…हा….बहुत खूब …..धरती का डोलना, किसका प्रतीक माना जाये?पिछली पोस्ट से सम्बंधित ….
अब पता चला प्रवीण जी की प्रवीणता का राज.सूक्ष्म और नुकीली टिपण्णी करना कोई आसान बात तो नहीं.पक्का भाभीजी का ही हाथ होगा इसमें भी.
वर-वर की कहानी।ढेरों शुभकामनाएं।बधाई।
मज़ेदार पोस्ट.
अच्छा. तो यह बात है. तभी तो मैं कहूं क़ि उस दिन आप जरा सी देर होने पर इतने डर क्यूँ रहे थे. फोन पर बस अभी पहुंचा, बस, आ रहा हूँ, बार-बार यही कह रहे थे. भगवान जाने घर पहुँचने पर आप पर क्या बीती? हाँ, मुझे याद है, कई दिनों तक तक आप कहते रहे क़ि तबीअत ठीक नहीं है. शरीर में दर्द है.आदि,आदि.वैसे वह वाली बात यदि उन्हें पता चल जाये, फिर तो गज़ब ही हो जाये.आशा है, आप इसे यथा ही लेंगे, अन्यथा नहीं.होली की अग्रिम शुमकामनाएँ.
मोरे मोहे बहुतै सुहात हैं,जो परस देओ बस वही खात हैं,अजी रोटी के संग कोई लठ्ट ले कर बेठा हो तो …. तो यही होगा, बेचारा सॆंया, अगर बीबी पहलवान हो तो भी सैंया डरे डरे तो होंगे ना:)
आपकी कहानी .. मेरी, उनकी, ज़्यादातर ब्लॉगेर्स की लगती है … पर आने हिम्मत की है लिखने की …
bahut hi shaandar majedaar post .saath me gaane ke bol ne char chanadlaga diye .
ज्ञान चक्षु शीघ्र खोलने हों, कुण्डलनी जाग्रत करनी हो तो बिना कुछ सोचे समझे विवाह कर लीजिये और यदि विवाह कर चुके हों तो अपनी धर्मपत्नी की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना प्रारम्भ कर दीजिये।बहुत बढ़िया लिखा है -पर जीवन के हर पथ पर सामंजस्य तो ज़रूरी है ही |ब्याह न करते तो इनता सुंदर लेख कैसे लिखते ?
दयनीय जेठालाल' और श्रीमतीजी 'निर्भीक दया भाभी' हा हा हा…..वैसे क्या से क्या हाल हो जाता है शादी के बाद, आप लोगों की बातों से अब डर लगने लग रहा है 😉 😉
हम तो चुप ही रहेंगे।
प्रवीण भाई ,आज तो सच में मजा आ गया पढ कर ।अभी-अभी बीते हुए तथाकथित महिला-दिवस गूंज सी लगी ।वैसे ये कहानी घर-घर की है । जैसे मुझे तो मेरे पतिदेव ने ओबामा ही बना दिया है ।
हमने अब यह तय किया है,उसे भी कुछ समय दिया जाए,यह उस पर अहसान नहीं हक़ है उसको भी कुछ कहने दिया जाए !
ek dam sachhi bat keh di aapne
Dil ki baat jubaan par laana and that too with a pich of humour…enjoyed reading it. Thanks
W.I.F.E.WORRIES INVITED FOR EVERजय हिंद…
हाहाहा.. प्रवीन जी … बहुत खूब .. मगर ये तो एक तरफ़ा बात हुई .. है तो घर घर की कहानी लेकिन … ज़रा हमारी हालत भी तो सोचो … कुछ भी कहने से पहले .. एक बड़ा सा शून्य दिख जाता है श्रीमान जी के चेहरे पर … हम पर क्या गुज़रती होगी .. 🙂
सखी सैयां तो बहुत ही भात हैपर बबिताजी को लाइन मारत जात है |(दया भाभी जानकर भी अनजान बनती जात है )बढ़िया पोस्ट |
मेरी कहानी है, मैं स्वयं झेलूँगा …आपकी कहानी…आपकी जुबानी…रोचक अंदाज़ में…दिलचस्प…
हम तो पहले से ही ज्ञान अर्जित करे बैठे हैं.. आठ साल हो चुके…
हम तो पहले से ही ज्ञान अर्जित करे बैठे हैं.. आठ साल हो चुके…
सभी को लग रहा होगा- ‘अरे, ऐसा तो मेरे साथ भी होता है।‘
'ज्ञान चक्षु शीघ्र खोलने हों, कुण्डलनी जाग्रत करनी हो तो बिना कुछ सोचे समझे विवाह कर लीजिये और यदि विवाह कर चुके हों तो अपनी धर्मपत्नी की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना प्रारम्भ कर दीजिये।'हम भी अपने सैयां को पढाते हैं आपका लेख…कई लोगों के मन की बात लिखी आपने. बहुत अच्छा लगा…उम्मीद है ऐसे ज्ञानवर्धक लेख आगे भी पढ़ें को मिलेंगे. 🙂 🙂
हा हा हा …बहुत सुन्दर अंदाज़ में लिखा है आपने …..
बहुत ही सुंदर और स्वस्थ हास्य. शुभकामना .
वाह …बहुत खूब लिखा है आपने ।
संवाद पर अनेकों शास्त्र लिखे ऋषियों ने पर पता नहीं क्यों पारिवारिक संवाद को इतना महत्व नहीं दिया गया? संभवतः परिवार में जो एकमार्गी संप्रेषण होता हो वह संवाद की श्रेणी में आता ही न हो। आदेश और संवाद में अन्तर ही इस प्रतीत होती सी भूल का कारण होगा। बहुत गहरे पैठ कर लाये है आप ये मोती…
प्रवीण भाई घर घर की कहानी को बखूबी शब्दों के माध्यम से उकेरा है आपने|
@ Udan Tashtariनिश्चित ही आपकी कहानी आप ही झेलेंगे मगर शुभकामनाएँ तो दे ही सकते हैं हम….एक तसल्ली रहेगी. :)पारस्परिक शुभकामनाओं से ही टिका है जगत, नहीं तो हम कब के ही ढह गये होते।फोटुवा वाले का हिम्मत नहीं पड़ा अपना ब्लॉग लगाने का, इसीलिये न दूसरे की फोटू लगा दिये हैं।@ ललित शर्माब्लॉग में ध्यान लगाना तो भय छिपाने के लिये होता है।@ संतोष त्रिवेदीहमारी सारी विवशता और भय, ऊर्जा में बदलकर ब्लॉग में लगा हुआ है। @ ashishहर व्यक्ति की कहानी है यह, सबका यही हाल है।@ दीपक 'मशाल'यह सीरियल तो अब लगभग नियमित देखना होता है, खाना खाते समय।
@ ZEALपरिस्थियों में तरलता बनी रहने दें, नहीं तो जीवन कष्टमय हो जायेगा।.@ निशांत मिश्र – Nishant Mishraकोतवाल भी तो किसी न किसी के सैंया होते हैं।@ amit-niveditaस्वयं खुश रहने के लिय उन्हें खुश रखना पड़ता है। खुश रखने की कीमत बहुत है जिससे दुख अधिक हो जाता है, अतः हम स्यं ही खुश नहीं रहते हैं।@ सतीश पंचममन जब अनुभव की एक डुबकी लगाकर आता है तो एक पोस्ट बन जाती है। हम श्रीमतीजी के ऋणी हैं कि मसाला मिलता रहता है। कहीं इस मसाले के भी दाम न देने पड़ जायें।@ Sunil Kumarजब हिम्मत जबाब दे जाती है तभी यह पोस्ट निकल पाती है, नहीं तो हम जूझते रहते हैं।
@ Rahul Singh मँहगाई का नाम इसलिये नहीं लिये काहे कि पूरा पीपली भी नहीं हुये हैं।@ पी.सी.गोदियाल "परचेत"आपसे शिक्षा लेने आते हैं शीघ्र ही।@ honesty project democracyडर के आगे जीत है, मान लिया, पर जब आपका डर आपसे अधिक बुद्धिमान हो जाये तो क्या करियेगा? @ अनूप शुक्लहाँ डरते हैं तो मुस्कान छिटक रही है, जब से डरना बन्द करने का प्रयास भी करेंगे तो क्रोध फट पड़ेगा।@ वाणी गीतयह तो है हमारी व्यथा-कथा।
@ डॉ॰ मोनिका शर्माबिचार बाँट लीजिये। हमारा दुख बाँटने से कम हो जायेगा, साथ में उनका भी।@ सतीश सक्सेनातसल्ली की पुछल्ली है, वरना किस्मत तो निठ्ठली है।@ रश्मि प्रभा…यदि दिनकर नहीं आये तो स्वयं ही कलम उठा काव्य लिखना पड़ेगा।@ Kajal Kumarयदि बोलने वाला आत्ममंथन कर ले तो हमारा चिंतन कम हो जायेगा।@ संगीता स्वरुप ( गीत )जो कहा है, सच कहा है और सच भी पूरा बताने में लाज आ रही है।
@ निर्मला कपिलाविवाह और ज्ञानचक्षु एक विषय हो सकता है शोध के लिये। आने वाली पीढ़ियाँ ही बतायेंगी कि विवाहितों की तपस्या अधिक कठिन थी। @ देवेन्द्र पाण्डेयआपकी कविता तो बिल्कुल मेरी कहानी है, चार दिन बाद एक चीज लाया हूँ तो सीना चौड़ा कर पिछले दो घंटे से घर पर बैठा हूँ।@ सुशील बाकलीवालइसी सिद्धान्त के कारण टिके हुये हैं।@ गिरधारी खंकरियालसंवाद कब आदेश बन जाता है और स्नेह कब रूठने में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता है।@ अन्तर सोहिलजेठालाल जैसे टिके भी हुये हैं हम तो, दिनभर दुखी फिर भी सुखी।
@ वन्दनाजब पूरा चित्र दिखायेंगे तब समझ में आयेगा कि मुस्कान का कारण क्या है?@ Manpreet Kaurबहुत धन्यवाद आपका।@ रंजनाभगवान ने न्याय और अन्याय भी बराबर से बाटा है।@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’बहुत धन्यवाद आपका।@ G.N.SHAWबुद्धिपटल बन्दकर बैठे हैं हम तो, न जाने कब से।
@ संजय @ मो सम कौन ?यदि दोनों समझें तभी यह युक्ति कार्य करेगी। @ Arvind Mishraजब तक ईकाई रहें ठीक है, जब दहाई हो जाती हैं तब दुहाई देते हैं सब।@ : केवल राम :और जीवन चल पड़ेगा।@ ताऊ रामपुरियाहमें तो लगा था कि हम सर्वाधिक पीड़ित हैं।@ cmpershadरूठे रहेंगे तो खाना भी नहीं मिलेगा, डरे रहते हैं तो दया आ जाती है उन्हे।
@ Patali-The-Villageबहुत धन्यवाद आपका।@ Akshita (Pakhi)ध्यान से देखो पाखी, इसे पति कहते हैं।@ देवेन्द्रअब तो पकड़े जाने के भय से छिपाना भी बन्द कर बैठे हैं।@ हरकीरत ' हीर'बहुत धन्यवाद आपका। धरती का डोलना निरीह को सताने की ध्वनि है, कभी प्रकृति को, कभी हमको।@ Rakesh Kumar कभी कभी न चाहते हुये भी गुण प्रवाहित होते रहते हैं।
@ मनोज कुमारशुभकामनाओं की नितान्त आवश्यकता है।@ वन्दना अवस्थी दुबेबहुत धन्यवाद आपका।@ संतोष पाण्डेयमन और शरीर तो आगत भय से डरने लगता है। उस दिन सच में और भी कार्य थे अतः भय कम था।@ राज भाटिय़ाअगर न खायें तो खाना न मिलने का भय।@ दिगम्बर नासवादर्द जब हद से गुजर जाये तब दवा बन जाता है।
@ ज्योति सिंहबहुत धन्यवाद आपका।@ anupama's sukrity !ब्याह कर लिया अतः सुन्दर लिख रहे हैं, न किये होते तो सुन्दर दिखते भी।@ abhiआप तो निभा ले जाओगे, हम संचित कर्मों को निभा रहे हैं।@ Smart Indian – स्मार्ट इंडियनहम भी तो चुप रहते हैं, पकड़े जाने में हमारी कौन सी गलती।@ niveditaजब ओबामा बना ही दिया है तो सारे अधिकारों का समुचित प्रयोग करें।
@ संतोष त्रिवेदीहम तो यह हक देकर न जाने कब से बैठे हैं।@ Khare Aकाश हम लोगों के लिये उतनी अच्छी भी होती यह बात।@ Gopal Mishraबहुत धन्यवाद आपका।@ खुशदीप सहगलजय हो आपकी।@ क्षितिजा ….हम पर क्या गुज़री, हम वही बता सकते हैं। अब सामने वाले के आनन्द पर आँसू तो नहीं बहा पायेंगे।
@ शोभना चौरेहर जेठालाल के जीवन में बबीता आ ही जाती है, क्या करे बेचारा जेठा।@ Dr (Miss) Sharad Singh सह रहे हैं, रह रहे हैं,गुज़री गयी हद से,तो कह रहे हैं।@ भारतीय नागरिक – Indian Citizenज्ञान भी मिल रहा हैऔर उसकी तीव्रता भी।@ mahendra vermaमुझे लगा कि अपनी कहानी कह हम विशिष्ट हो गये।@ Puja Upadhyayविवाह में तो ज्ञान का अम्बार है, जबरिया मिलता रहता है। ज्ञान रहेगा और उलका भान रहेगा तो अवश्य लिखेंगे।
@ Coralबहुत धन्यवाद आपका।@ मेरे भावबहुत धन्यवाद आपका।@ सदा बहुत धन्यवाद आपका।@ kase kahun?by kavita.अनुभवजन्य ज्ञान तो मात्र वैवाहिक जीवन से ही मिल पायेगा।@ Navin C. Chaturvedi मन को व्यक्त कर पाया, मेरे लिये वही बहुत है। बहुत धन्यवाद आपका।
पोस्ट पढ़कर बड़ा मज़ा आया…हो सकता है आपकी ये अनुभव भरी बातें मेरे लिए बहुत मददगार साबित हों… याद रखूंगी…धन्यवाद…
सुंदर पोस्ट …सुंदर विचार !शुभकामनाएँ!
आपकी इस पोस्ट को 'देवानन्द पोस्ट' या फिर 'सदा जवॉं, सदा बहार पोस्ट' कहने दीजिए। आपका चुना हुआ विषय अपने आप में 'ब्रह्म' है – सर्वकालिक, सर्वोपयोगी, सर्वसम्बध्द आदि-आदि।पढते-पढजे ही गुदगुदी होने लगी थी। अब भी हो रही है। काश। मुझे इस तरह हँसते कोई देख पाता।
अच्छी पोस्ट मजा आगया
@ POOJA…ये अनुभव आपके बहुत काम आयेंगे क्योंकि अन्ततः पति ही बेचारा हो जाता है।@ डॉ. हरदीप संधु बहुत धन्यवाद आपका।@ विष्णु बैरागीकिसी की जान जाती है,आपको गुदगुदाती है।@ संजय कुमार चौरसिया बहुत धन्यवाद आपको।
भाभी जी को खुश करने का यह तरीका भी अच्छा लगा !मेरी शुभकामनाएँ !
माता उर्वशी के सारे अधिकार समेट अपनी कान्ति की आभा का विस्तार करने में व्यस्त हैं। कोई दिनकर पुनः आये और नयी उर्वशी का रूप गढ़े, पारिवारिक संदर्भों में। आप कौनसे कम हैं जी, कर दीजिये श्री गणेश । डर भी जाता रहेगा ।
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ यदि ऐसे ही खुशी मिलती है उन्हें तो हम प्रस्तुत हैं डरे डरे रहने के लिये।@ Mrs. Asha Joglekarस्वयं लिखेंगे तो संलिप्तता का आक्षेप लग जायेगा।
मेरे ब्लोगिंग की सबसे बड़ी शत्रु मेरी धर्मपत्नी है | लेकिन जिस दिन मै कम्प्युटर के सामने नहीं बैठता हूँ या नेट बंद हो जाता तो मुझसे भी ज्यादा बैचेनी उसे ही होती है | ये माजरा क्या है भगवान जाने |
गृहस्थ आश्रम का जीवन दर्शन है आपकी पोस्ट…
SHADI KA TAJURBAA GAHAN GYAAN!!!
@ नरेश सिह राठौड़ तुम्ही से दिल का हाल बतायें, तुम्ही से हाल छिपायें, हमें क्या हो गया है।@ अरुण चन्द्र रॉय गृहस्थ आश्रम में तो जीवन के दर्शन हो जाते हैं।@ murariविवाह ज्ञान का स्रोत है, निबाह उसकी गहनता का।
हा…हा…हा…हा..क्या कमाल का लिखा है उस पर सतीश पंचम जी का कमेन्ट :)आनंद आ गया पढ़कर
@ क्रिएटिव मंच-Creative Manchबहुत धन्यवाद आपका।
मन की बात लिखी…..बहुत अच्छा लगा
@ संजय भास्कर मन में तो डर बैठा है, उसी की ही बात है, कारण भी ज्ञात है।
नेह और अपनेपन केइंद्रधनुषी रंगों से सजी होली उमंग और उल्लास का गुलालहमारे जीवनों मे उंडेल दे.आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.सादर डोरोथी.
@ Dorothy आपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें होली की।
ek dum sahi kahe hai aap…aaj ke zamane me pati -patni bas ek dusre ko jhe rahe hai bas…sab apne apne ghar me ajkl jetalal or daya vhavi hi bane hue hai…bhut khub likha aapne..ek line yaad aai mujhe ki…ki pati ne patni se kaha-tumse picchha chudake chalo mar hi jayenge,or tum waha nark me bhi pahuch gai to tab kha jayenge….
@ arti jhaसच कहा, जब हर जगह साथ ही रहना है तो क्यों न निभा लें।
होली की आपको बहुत बहुत शुभकामनाये आपका ब्लॉग देखा बहुत सुन्दर और बहुत ही विचारनीय है | बस इश्वर से कामनाये है की app इसी तरह जीवन में आगे बढते रहे | http://dineshpareek19.blogspot.com/http://vangaydinesh.blogspot.com/धन्यवाददिनेश पारीक
@ Dinesh pareekबहुत धन्यवाद आपका।