कटी पतंग से इश्किया तक

by प्रवीण पाण्डेय

चालीस वर्षों में एक पीढ़ी दूसरी में पदोन्नति पा जाती है पर नहीं भुलाये जा पाते हैं वह अनुभव व भावनायें जो हम जी आये होते हैं। बहुत से गुदगुदा जाने वाले क्षणों में हमारे प्रेम की अवधारणा कहीं न कहीं छिपी रहती है। किसी व्यक्ति विशेष के लिये प्रेम की यह अवधारणा भले ही न बदले पर समाज में आया बदलाव भी आँखों से ओझल नहीं किया जा सकता है। 1970 से 2010 तक, ये बदलाव क्या रंग लाये हैं, यदि देखना चाहें तो आपको मैं टहला लाता हूँ।
जिस गली में तेरा घर न हो बालमा
कटी पतंग नामक फिल्म आयी थी 1970 में। एक विधवा(कटी पतंग) के प्रति उमड़ता नायक का प्रेम व्यक्त होता है, एक गीत के माध्यम से। राजेश खन्ना आशा पारिख को नाव में बिठा कर ले जा रहे हैं और गा रहे है जिस गली में तेरा घर न हो बालमा, उस गली से हमें तो गुज़रना नहीं। पूरा गीत सुने तो भाव निकलेगें पूर्ण समर्पण व एकनिष्ठता के। आज भी जब कोई युवा नायिका वह गीत सुनती है तो स्वयं को सातवें आसमान में पाती है, जबकि वही गीत सुनकर युवा नायक स्वयं को सात कारागारों में घिरा पाता है।

दिल तो बच्चा है जी
इस वर्ष एक फिल्म आयी, इश्किया। इसमें भी एक विधवा के प्रति नायकों का प्रेम उमड़ता है, एक दूसरे गीत के माध्यम से। नसीरुद्दीन शाह व अरशद वारसी विद्याबालन को देख गाना गाते हैं डर लगता है तनहा सोने में जी, दिल तो बच्चा है जी। इस गीत के बोल दिल की असंतुलित, बच्चासम और कुछ भी कर जाने की प्रवृति पर केन्द्रित हैं। इस गाने को सुन भले ही नायिकायें उतना सहज न अनुभव करें पर नायकगण अपनी उन्मुक्तता दिल के बच्चेपन पर न्योछावर कर बड़ा स्वच्छन्द अनुभव करते हैं।

जिन्होने अपनी युवावस्था में कटी पतंग आधारित प्रेम अवधारणा अपनी मानसिकता में सजायी है, उन्हें इश्किया के विचार भाव छिछोरापन लगेंगे, वहीं आज की पीढ़ी को कटी पतंग जैसा समर्पण सम्पूर्ण-मूर्खता लगती है।
1970 में मेरा जन्म नहीं हुआ था और 2010 में हम प्रेम के अवस्था को पार कर गृहस्थी में बँधे हैं। इस प्रकार हम तो कोई भी छोर नहीं पकड़ पाये। पर कुछ वयोवृद्ध व कुछ उदीयमान ब्लॉगर अब तक इस पोस्ट की तह तक पहुँच चुके होंगे और करने के लिये टिप्पणी भी सोच ली होगी। उन्हीं का प्रकाश, प्रेम के इस अन्धतम में जी रहे हम अल्पज्ञों का ज्ञान बढ़ा पायेगा। कुछ व्यक्तित्व जो प्रेमजगत के अत्याधिपति हैं, निश्चय ही अल्पज्ञों के मार्गदर्शन में स्वतः आगे आयेंगे।
पता नहीं कि कौन सा सच आपके हृदय की धड़कन है?

आपके प्रेम की अवधारणा जिस पर भी ठीक उतरती हो आप वह गाना सुन लीजिये। दोनों के ही सुर उतने ही उखड़े हैं जितना इस काल में प्रेम पर विश्वास। मेरे गाने के पूर्व दुस्साहस को सराहने का फल मात्र है यह श्रवण। अपना बढ़ना बन्द करने के प्रयास में मैंने कुछ दिन पहले ये दोनों गीत मंच से गाये थे। जब गीत चयन कर रहा था तब यह आशा नहीं थी कि मैं प्रेम के दो छोरों में, सारे सुनने वालों को बाँधने का प्रयास कर रहा हूँ।

जिस गली में तेरा घर न हो बालमा
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दिल तो बच्चा है जी
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